'यदि आपके घर-गाँव पर दावा ठोंक दिया, तो कोर्ट भी आपकी नहीं सुनेगी..', इस 'काले कानून' के बारे में जानता ही नहीं आधा हिंदुस्तान !

'यदि आपके घर-गाँव पर दावा ठोंक दिया, तो कोर्ट भी आपकी नहीं सुनेगी..', इस 'काले कानून' के बारे में जानता ही नहीं आधा हिंदुस्तान !
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नई दिल्ली: सोचिए, आपने अपनी पूरी जमापूंजी लगाकर एक घर बनाया और उसमे चैन की सांस लेने बैठे। लेकिन तभी कोई आकर आपसे कहे कि ये मेरी संपत्ति है, खाली करो। वरना जितना मैं कहूं उतना मुझे किराया दो। आप क्या करोगे ? हम अगर लड़ाई-झगड़े की बात ना करके, कानूनन बात करें तो आप पुलिस के पास जाओगे। लेकिन पुलिस आपसे कह दे कि हम इसमें कुछ नहीं कर सकते। फिर ? थोड़ा बहुत पैसा और थोड़ी जानकारी होगी, तो आप अदालत भी जाओगे। पर यकीन मानो, अदालत भी आपसे यही कहेगी कि हम सुनवाई नहीं कर सकते, जिसने आपकी जमीन पर दावा ठोका है, उसी के सामने आपकी सुनवाई उसी के ट्रिब्यूनल में होगी। यानी जिनसे आपकी जमीन हड़पी, आपको उसी से जाकर न्याय की गुहार लगानी होगी। खोसला का घोंसला मूवी में ऐसा एक दृश्य है, जहाँ बोमन ईरानी, अनुपम खेर की जमीन हड़प लेता है और वापस लेने जाने पर उसी से पैसे मांगता है। ऐसा ही एक कानून, हमारे धर्मनिरपेक्ष भारत में आज़ादी के बाद भी बदस्तूर चल रहा है और इसकी शक्तियां और संपत्ति लगातार बढ़ती जा रही है। मजे की बात तो ये है कि आधे हिंदुस्तान को इस बारे में पता ही नहीं। 

ये है देश का वक्फ बोर्ड कानून। निया के किसी भी देश में वक्फ बोर्ड के पास इतनी शक्तियां नहीं हैं, यहां तक ​​कि सऊदी या ओमान जैसे रूढ़िवादी इस्लामी देशों में भी ऐसा कानून नहीं है, वहां भी देश की जमीन -संपत्ति सरकार के कब्जे में है। लेकिन हमारे धर्मनिरपेक्ष देश की सरकार ने, जमींदारी प्रथा को ख़त्म करके मजहबी जमींदारी की प्रथा शुरू कर दी, जिसमे सिर्फ एक मजहब का ही वर्चस्व हो। आजादी के बाद भारत में वक्फ एक्ट 1954 नेहरू सरकार लेकर आई थी। साल 1995 में एक्ट कुछ संशोधन हुए। कुछ किताबें ये भी कहती हैं कि, बंटवारे के बाद पाकिस्तान से जो लोग भारत आए, उनकी संपत्ति पर तो पाकिस्तानियों ने कब्जा कर लिया। लेकिन यहाँ से जिन लोगों ने इस्लामी मुल्क चुना, भारत सरकार ने उनकी संपत्ति वक्फ के नाम कर दी। जिसमे सबसे अधिक दिल्ली और बंगाल में थी। इसके बाद शुरू हुआ, वक्फ के फैलने का दौर, कानून में एक के बाद एक संशोधन और असीमित ताकत।   

साल था 2013,  केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, जिसके ऊपर एक राष्ट्रीय सलाहकार समिति (NAC) थी, जिसकी अध्यक्ष सोनिया जी गांधी थीं। ये समिति भारत सरकार को सलाह देती थी कि क्या करना है, क्या नहीं, और कैसे करना है। मजे की बात ये भी है कि, आज़ादी के बाद किसी प्रधानमंत्री के ऊपर ऐसी समिति नहीं बनी। हाँ, प्रधानमंत्री के पास एक सलाहकार हुआ करता था, लेकिन पूरी समिति नहीं। ये वो समय था, जब विदेशी महिला होने के नाते सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने का विरोध हुआ करता था, शायद इसलिए उन्होंने NAC अध्यक्ष के रूप में पॉवर अपने हाथ में रखना चुना हो। बहरहाल, 2013 में हुआ ये कि, कांग्रेस सरकार ने जाते जाते वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां दे दी। 

वक्फ बोर्डों को संपत्ति छीनने की असीमित शक्तियां देने के लिए अधिनियम में संशोधन किया गया, जिसे किसी भी देश के किसी भी कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती। स्पष्ट रूप से कहें तो वक्फ बोर्ड ने दावा ठोंक दिया, तो आप कहीं नहीं जा सकते और उसके पास ऐसा करने का पूरा अधिकार है। मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि मामले में भी मुस्लिम पक्ष की तरफ से पेश वकील तस्लीमा अजीज अहमदी ने कहा था कि विवादित संपत्ति, वक्फ संपत्ति होने के चलते इस संपत्ति विवाद का निपटारा केवल वक्फ न्यायाधिकरण के समक्ष ही किया जा सकता है, कोर्ट में नहीं। उन्होंने कहा कि कोई भी पीड़ित शख्स होने के नाते ट्रिब्यूनल के समक्ष अपनी समस्या रख सकता है। हालाँकि, हिन्दू पक्ष ने कोर्ट में इसके लिए तर्क दिए थे कि ये वक्फ प्रॉपर्टी नहीं है, जिसके बाद मामला आगे बढ़ा। इसका सीधा सा मतलब है कि 2013 के संशोधन में  धर्मनिरपेक्ष देश में एक धार्मिक बॉडी को असीमित ताकतें दे दी गईं, जिसने पीड़ित का न्यायपालिका से न्याय मांगने का अधिकार भी छीन लिया। देश में किसी अन्य धार्मिक संस्था के पास ऐसी शक्तियां नहीं हैं। वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 3 स्पष्ट रूप से कहती है कि अगर वक्फ 'सोचता' है कि जमीन किसी मुस्लिम की है, तो यह वक्फ की संपत्ति है। वहीं, वक्फ को इस संबंध में कोई सबूत देने की भी जरूरत नहीं है कि उन्हें क्यों लगता है कि जमीन उनके स्वामित्व में आती है।   

अभी बोर्ड के पास किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने का अधिकार है, दलील ये दी जाती है कि ये संपत्ति किसी जरूरतमंद मुस्लिम की भलाई के लिए होगी। लेकिन, होता इन पर अक्सर अतीक अहमद, मुख़्तार अंसारी जैसे बाहुबलियों का ही कब्जा है।  अब इस ताकत का इस्तेमाल देखिए, वक्फ बोर्ड, मुकेश अंबानी के एंटीलिया पर भी दावा ठोंकता है। हालाँकि, वो मामला 2013 से पहले का था, और अंबानी भी पैसे वाले, इसलिए पहुँच गए कोर्ट, अभी भी मामला पेंडिंग है, वक्फ ने दावा नहीं छोड़ा है। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल भी  कह चुके हैं कि केंद्र में उनकी सरकार आई तो मुकेश अंबानी का घर तोड़कर जमीन वक्फ को दी जाएगी। उनके भाषण पर लोगों ने जमकर तालियां बजाई। यहाँ तक कि इलाहाबाद हाई कोर्ट की जमीन पर भी वक्फ ने कब्ज़ा ठोंक दिया था। हाई कोर्ट के पसीने आ गए, सुप्रीम कोर्ट जाकर अपनी जमीन वापस लेने के लिए, सालों लग गए। हाई कोर्ट के खिलाफ वकील और तत्कालीन कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल वक्फ बोर्ड की तरफ से लड़ रहे थे। मगर किसी तरह हाई कोर्ट आखिर केस जीता। ये मामला भी पहले का था, इसलिए सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया। 

बीते साल वक्फ ने तमिलनाडु के एक हिन्दू बहुल गाँव पर दावा ठोंक दिया, कागज़ भी बदल गए और गांव वालों को पता भी नहीं चला। मामला तब उजागर हुआ जब, राजगोपाल नाम के एक व्यक्ति को कुछ पैसों की जरूरत पड़ी और उसने अपनी 1 एकड़ जमीन राजराजेश्वरी नामक व्यक्ति को बेचने की कोशिश की। राजगोपाल जब अपनी जमीन बेचने हेतु रजिस्ट्रार कार्यालय पहुँचे, तो उन्हें पता चला कि ''वे जिस जमीन को बेचने आए हैं, वह उनकी है ही नहीं बल्कि, अब वो जमीन वक्फ की हो चुकी है और अब उसका मालिक वक्फ बोर्ड है। वक्फ बोर्ड के निर्देश के मुताबिक, इस जमीन को बेचा नहीं जा सकता। आपको चेन्नई में वक्फ बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) लेना  होगा।'' यानी, पीड़ित राजगोपाल अब चेन्नई वक्फ बोर्ड के ऑफिस जाए, वहां अधिकारियों को या तो घूस दे, उनके हाथ पैर जोड़े या फिर अपनी जमीन को जाते हुए देखे। एक रास्ता ये भी हो सकता है कि वक्फ उससे कहे 'इस्लाम कबूल कर लो, तुम अपनी जगह के मालिक हो जाओगे।' इस तरह से धर्मान्तरण के खेल भी वक्फ में देखे गए हैं। क्योंकि, वक्फ में अधिकारी से लेकर कर्मचारी, विधायक, सांसद, मुतवल्ली, जज सब एक ही समुदाय के हैं। राज्य, केंद्र सरकार, या अदालत तो उसमे दखल भी नहीं दे सकती, भैया संविधान अपने धर्म को मानने का अधिकार देता है, बकौल असदुद्दीन ओवैसी जी।      

राजगोपाल ने जब ग्रामीणों को ये बात बताई, तो पूरे गाँव के लोग दस्तावेज लेकर कलेक्टर के पास पहुंचे, लेकिन पूरा गाँव वक्फ का हो चुका था। यहाँ तक कि 1500 साल पुराना हिन्दू मंदिर भी, जो पैगम्बर मोहम्मद के जन्म लेने से भी पुराना है। वक्फ कानून के जरिए जमीन हड़पना एक क्रूर वास्तविकता है, जिसके शिकार अधिकतर दलित, आदिवासी, और पिछड़े समुदाय के लोग ही बनते हैं। ऐसी खबरें आये दिन मीडिया में आती हैं, जहाँ वक्फ बोर्ड ने सार्वजनिक या निजी भूमि को वक्फ के तौर पर पंजीकृत करने की माँग की है। इसमें सूरत में सरकारी इमारतें, बेंगलुरु में तथाकथित ईदगाह मैदान, हरियाणा में जठलाना गाँव, हैदराबाद का पाँच सितारा होटल आदि शामिल हैं। आज भारत के कई मंदिरों को वक़्फ़ की प्रॉपर्टी कहा जाता है। जैसे श्रीकृष्ण जन्मभूमि, श्री काशी विश्वनाथ का असली स्वयंभू शिवलिंग, धार भोजशाला आदि। 

भूमि हड़पने के तीन सबसे आम तरीके हैं- किसी भूमि को अपना कब्रिस्तान बताकर दावा करना, मजार/दरगाह बनाना और सार्वजनिक भूमि पर नमाज पढ़ना शामिल है। सार्वजनिक जमीनों पर शायद इसलिए नमाज पढ़ी जाती है, ताकि बाद में उस पर वक्फ संपत्ति होने का दावा किया जा सके। क्योंकि, पिछली कुछ स्थितियाँ एवं दावे इनसे संबंधित और इससे भी बढ़कर मिले हैं। आज वक्फ बोर्ड भारत में तीसरा सबसे बड़ा जमीन मालिक है और संपत्ति बढ़ना जारी है, जो कभी वापस नहीं मिलेगी। वक़्फ़ एक्ट का कहना है कि वो संपत्ति अब अल्लाह ही हो चुकी, वापस नहीं ली जा सकती। क्फ मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया के अनुसार, 2022 तक देश के सभी वक्फ बोर्डों के पास कुल मिलाकर 8 लाख 54 हजार 509 संपत्तियां हैं, जो लगभग 8 लाख एकड़ से अधिक जमीन पर फैली है। इस कानून को रद्द करने की कई बार मांग उठी है, और इसमें दो राय नहीं कि सिर्फ भाजपा नेताओं ने ही उठाई है। अब केंद्र की मोदी सरकार इसमें संशोधन करने का बिल ला रही है, हंगामा मचना तो तय है, अब संसद में कितनी पार्टियां सरकार का समर्थन करती हैं और कितना विरोध, ये देखना भी दिलचस्प होगा। 

इतिहास के मुताबिक, 7वीं शताब्दी ईस्वी में पैगंबर मोहम्मद के जन्म के बाद मक्का और मदीना से इस्लाम फैलना शुरू हुआ था। 622 ईस्वी में पैगंबर मुहम्मद यतुरिब शहर (अब मदीना) को चले गए। वहाँ उन्होंने अरब की जनजातियों को एकजुट किया और वापस 630 ईस्वी में मक्का पहुंचे और मक्का में मौजूद सभी बुत (मूर्तियों) को नष्ट करने का आदेश दिया। करीब 632 ईस्वी में उनका इंतकाल हो गया। इसके बाद शुरुआती मुस्लिम कबीले इस्लाम के प्रचार-प्रसार के लिए दुनिया भर में फैलने लगे। 8वीं शताब्दी ईस्वी तक उमय्याद खिलाफत में इस्लाम पश्चिम में लाइबेरिया से लेकर पूर्व में सिंधु नदी तक अपना कब्ज़ा कर लिया। भारत से भी दो देश टुकड़े होकर जा चुके, अब देश के अंदर भी 8 लाख एकड़ पर वक्फ का कब्जा है और काम जारी है। हाँ, उधर इजराइल ने भी फिलिस्तीन की जमीन पर कब्जा कर रखा है, जिसके लिए जंग हो रही है। 

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