यह भारत तो हर किसी को पता है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ दिमाग निवास करता है, जैसे दुनिया को संकल्पना देने वाला भारत अपनी विशाल आबादी के चलते सेहत के मोर्चे पर बीमार सा दिखता है. स्वास्थ्य पर हमारा सार्वजनिक खर्च जीडीपी का एक फीसद है. ऐसे में स्वास्थ्य सेवा से जुड़े बुनियादी ढ़ाचे के साथ कर्मियों की भी बेहद कमी है. कोरोना महामारी के बाद अनुमान लगाया जा रहा है कि दुनिया एक बार फिर हथियारों की जगह जीवनरक्षक उपकरणों और संसाधनों पर निवेश करेगी. भारत को भी ऐसा ही करना होगा.
आपकी जानकारी के लिए बता दे कि 2018 में प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित ग्लोबल बर्डेन डिजीज स्टडी के हेल्थ केयर एक्सेस एंड क्वालिटी इंडेक्स में शामिल 195 देशों में भारत 145वें स्थान पर खड़ा है. इस सूचकांक में औसत अंक 60 है जबकि 41.2 अंकों के साथ भारत अपने पड़ोसी देशों बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका और भूटान से भी पीछे है.
क्या कोरोना से लंबी लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रहा भारत ?
वर्तमान परिस्थिति में देश में किसी महामारी से निपटने के लिए कानून एपीडेमिक डिजीज एक्ट 1897 अस्तित्व में है. इसमें अधिकतर प्रावधान दशकों पुरानी प्रवृत्तियों के आधार पर तैयार किए गए हैं. जैसे कानून में सीमा प्रतिबंध का विभिन्न बंदरगाहों को मानक माना गया है क्योंकि उस समय यातायात का सबसे बड़ा साधऩ जल था.
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