आप सभी को बता दें कि आकाश में भ्रमण कर रहे शनि ग्रह की रेखा भी विशिष्ट है और यह बल्यधारी ग्रह अपने नीलाभवर्ण और चतुर्दिक मुद्रिका-कार आभायुक्त वलय के कारण बहुत ही शोभायमान प्रतीत होता है. ऐसे में यह ग्रह अपनी अशुभ स्थिति में मनुष्य को ढाई वर्ष, साढे सात वर्ष, अथवा उन्नीस वर्षों तक अत्यधिक पीडा देता है परंतु शुभ स्थिति में यह ग्रह उतना ही वैभवदाता, रक्षाकारी और संपन्नतावर्धक रूप धारण कर लेता है. कहा जाता है यदि यह लम्बी और सीधी है तथा गुरु और शुक्र की अंगुलियां उसकी ओर झुक रही हैं तो मनुष्य के स्वभाव और चरित्र में शनिग्रहों के गुणों की प्रधानता होगी और वहीं शनि ग्रह से प्रभावित मनुष्य के शारीरिक गठन को बहुत आसानी से पहचाना जा सकता है.
कहते हैं मनुष्य कद में असामान्य रूप में लम्बे होते हैं और उनका शरीर सुसंगठित लेकिन सिर पर बाल कम होते हैं. वहीं लम्बे चेहरे पर अविश्वास और संदेह से भरी उनकी गहरी और छोटी आंखें हमेशा उदास रहती हैं और उत्तोजना, क्रोध और घृणा को वह छिपा नहीं पाते. इसी के साथ इस पर्वत के अभाव होने से मनुष्य अपने जीवन में अधिक सफलता या सम्मान नहीं प्राप्त कर पाता. कहते हैं हस्तरेखा में ‘शनि रेखा’ का प्रभाव-दुष्प्रभाव मध्यमा अंगुली के नीचे शनि पर्वत का स्थान है और यह पर्वत बहुत भाग्यशाली मनुष्यों के हाथों में ही विकसित अवस्था में देखा गया है. इसी के साथ शनि की शक्ति का अनुमान मध्यमा की लम्बाई और गठन में देखकर ही लगाया जा सकता है और मध्यमा अंगुली भाग्य की देवी मानी जाती है.
कहते हैं भाग्यरेखा की समाप्ति प्रायः इसी अंगुली की मूल में होती है और पूर्ण विकसित शनि पर्वत वाला मनुष्य प्रबल भाग्यवान होता है. इसी के साथ मनुष्य जीवन में अपने प्रयत्नों से बहुत अधिक उन्नति प्राप्त करते हैं और शुभ शनि पर्वत प्रधान मनुष्य, इंजीनियर, वैज्ञानिक, जादूगर, साहित्यकार, ज्योतिषी, कृषक अथवा रसायन शास्त्री बन जाते हैं.
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