नई दिल्ली: दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) वीके सक्सेना ने नियुक्ति के लिए फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल करने के आरोप में दिल्ली के सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों के सात शिक्षकों को बर्खास्त करने का आदेश दिया है। इसके अलावा, उन्होंने इस मामले की CBI जांच की मांग की है। सतर्कता निदेशालय (DoV) ने बर्खास्तगी और CBI जांच की सिफारिश की है, जिसमें कहा गया कि कुछ TGT और PGT शिक्षकों की नियुक्ति दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय के अधिकारियों और स्कूल प्रबंधन के बीच मिलीभगत से की गई थी।
अब तक हुई जांच से पता चला कि 7 चयनित शिक्षकों ने फर्जी एक्सपीरियंस सर्टिफिकेट जमा किया था, जिसने उनके पद को सुरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अनुभव के प्रत्येक वर्ष में उम्मीदवारों को अतिरिक्त अंक दिए गए, जिससे जाली प्रमाणपत्र एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया। दिल्ली शिक्षा विभाग के नियम व शर्तों के मुताबिक सभी चयनित अभ्यर्थियों के प्रमाणपत्रों की जांच की जिम्मेदारी स्कूल प्रबंधन की थी। हालांकि, LG हाउस के अधिकारियों ने कहा है कि स्कूल प्रबंधन इन शिक्षकों द्वारा प्रस्तुत अनुभव प्रमाणपत्रों को पर्याप्त रूप से सत्यापित करने में विफल रहा। उन्होंने दावा किया कि नियुक्ति पत्र, भुगतान विवरण, बैंक रिकॉर्ड और स्कूल उपस्थिति रिकॉर्ड के माध्यम से प्रमाणपत्रों का सत्यापन सहित कोई भी आवश्यक मानदंड पूरा नहीं किया गया था।
मुख्य सचिव के निर्देश के बाद अनुभव प्रमाणपत्रों का भौतिक सत्यापन कराया गया तो तीन प्रमाणपत्र फर्जी पाए गए। शेष चार प्रमाणपत्रों में सहायक दस्तावेजी साक्ष्य का अभाव था। जवाब में मुख्य सचिव ने इन कर्मचारियों को बर्खास्त करने का प्रस्ताव रखा। DoV को इस मामले में आपराधिक मामला दर्ज करने के लिए सीबीआई के पास शिकायत दर्ज करने का निर्देश दिया गया है। इसके अतिरिक्त, LG सक्सेना ने चयनित उम्मीदवारों द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों की प्रामाणिकता को सत्यापित करने के लिए पिछले एक दशक में सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों के भर्ती रिकॉर्ड की समीक्षा का आदेश दिया है। भविष्य में इसी तरह की घटनाओं को रोकने के लिए, सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में भर्ती प्रक्रिया का आकलन करने और सुधार की सिफारिश करने के लिए एक समिति की स्थापना की जाएगी।
दिल्ली में प्रिंसिपलों की भी फर्जी नियुक्ति:-
बता दें कि, सीएम अरविंद केजरीवाल अक्सर दिल्ली के शिक्षा मॉडल की तारीफ करते नज़र आते हैं, लेकिन वही शिक्षा मॉडल अब अदालती पचड़े में फंसता दिखाई दे रहा है। दरअसल, दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें "जाली और मनगढ़ंत दस्तावेजों" के आधार पर दिल्ली सरकार के स्कूलों के 35 नवनियुक्त प्रिंसिपलों की नियुक्ति की जांच करवाने की मांग की गई है। जनहित याचिका (PIL) के मुताबिक, 35 उम्मीदवार दुर्भावनापूर्ण रूप से खुद को गलत तरीके से पेश करने में कामयाब रहे और उनका चयन अवैध रूप से किया गया, और दिल्ली सरकार का शिक्षा विभाग उनके द्वारा प्रस्तुत आवश्यक दस्तावेजों की जांच करने में बुरी तरह विफल रहा, जिसके परिणामस्वरूप उनका गलत चयन हुआ।
रिपोर्ट के मुताबिक, सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता नवेंदु चैरिटेबल ट्रस्ट के वकील ने उन लोगों को पक्ष में लाने के लिए समय मांगा, जिनके खिलाफ आरोप लगाए गए हैं। इस पर मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील को मांगा गया समय दिया और मामले को 18 अक्टूबर को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया। स्थायी वकील संतोष कुमार त्रिपाठी और वकील अरुण पंवार ने दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व किया।
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