हेडलाइन पढ़ कर आप खुश तो हो ही गए होंगे, आज हेरा फेरी के बाबूराव का जन्म दिन है और वह आज 67 वर्ष के हो चुके है. परेश रावल अपनी फिल्मो में की गए कॉमेडी रोल के लिए जाने जाते है. मगर क्या किसी को पता है उन्होंने बहुत से विलेन के रोल भी किये है. फिल्मो में आने से पहले वह नाटक किया करते थे. और सन 1984 के दौरान उन्होंने दूरदर्शन पर प्रसारित हो रहे कुछ सीरियलों में भी काम किया है. इन सबको एक तरफ रख दिया जाये तो उनका दूसरा चेहरा है राजनीतिक, वह अहमदाबाद शहर से सांसद भी है.
किसी कलाकार का कोई धर्म नहीं होता है. वह एक तरफ कलाकार है दूसरी और नेता, आइये एक नजर डाले उनके दोनों स्वरूपों पर. आज की सियासत धार्मिक ज्यादा हो गई है. मगर परेश कहते है, मेरा काम सिर्फ मेरे क्षेत्र को देखना है, वहां सब ठीक चले, मुझे राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है. यही परेश का स्टाइल है. आजकल वह अधिक चर्चित हो रहे है क्योकि उन्होंने मशहूर लेखिका अरुंधति को लेकर ट्वीट किया था कि कश्मीर में मानव आवरण के तौर पर कश्मीरी युवक के बजाय अरुंधति को जीप से बांधना चाहिए. ये वाकई एक महिला का अपमान है. किन्तु कश्मीर में भारतीय सेना पर पत्थरबाजों का हमला भी ठीक नहीं है, उन्हें बढ़ावा देना गलत है.
परेश का सॉफ्ट चेहरा इस बात से झलकता है जब वह अपनी पत्नी के बारे में बताते है कि उन्होंने पहली बार स्वरूप सम्पत को देखा और अपने दोस्त से कहा, ये एक दिन मेरी पत्नी बनेगी और आज 1979 की मिस इंडिया स्वरूप सम्पत उनकी पत्नी है. ये वही परेश है जिन्होंने ओह माय गॉड फिल्म बना कर मूर्ति पूजा पर शिकंजा कसा था. ये वही परेश है जो हिंदुत्व राजनीति करने वाली बीजेपी पार्टी के नेता है. चौंकिएगा नहीं, ये परेश का स्टाइल है. वह हिंदुत्व में विश्वास रखते है और कहते है भगवान अगर कही है तो हम सब में किसी न किसी रूप में मौजूद है. राजनीति उनके बस की नहीं, वह बीजेपी में सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी के कारण है. अब सवाल उठता है कि क्या वह भी मोदी भक्त है. परेश मानते है प्रधानमंत्री मोदी एक बहुत अच्छे वक्ता है और वह विकास के लिए काम कर रहे है.
परेश यह भी मानते है उनकी जड़े फिल्मे है, उनकी कला है, क्योकि यही से वह कमाई कर रहे है. कलाकार होने के कारण ही वह सांसद बने है. इसलिए अपनी कला को वह कभी नहीं छोड़ेगे. अब आप को भी मानना पड़ेगा, वह बीजेपी में कार्य करते हुए ओह माय गॉड2 भी बनाने वाले है और विरोधियो के सारे सवालों के जवाब भी उनके पास मौजूद है. तो इस बात पर निश्चित तौर पर हम कह सकते है कि ये वाकई में परेश का अजब गजब स्टाइल है, जो साफ बात कहता है.
खैर राजनीतिक मुद्दे के अलावा उनके फिल्मो के डायलॉग इतने लोकप्रिय है कि आम लोग दिनचर्या में भी उसे इस्तेमाल करते है. जैसे ये बाबूराव का स्टाइल है. दूसरा है उठा ले रे देवा मुझे नहीं इन दोनों को उठा ले. मै तेजा हु मार्क इधर है. और भी बहुत से डायलॉग है. हेराफेरी, हलचल, भूल भुलैया , अंदाज अपना अपना, चुप चुप के, मोहरा, आवारा पागल दीवाना, गरम मसाला, गोलमाल, भागमभाग, वेलकम, दे दना दन, ओह माय गॉड खास फिल्मो में शामिल है. मगर वह खुद केतन मेहता की फिल्म सरदार को ज्यादा तवज्जो देते है, जिसमे उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी और उप प्रधान मंत्री सरदार वल्ल्भभाई पटेल का किरदार निभाया है. अंत में इतना ही कहेगे, परेश खुद को एक कलाकार मानते है मगर देश के लिए भी उनके कुछ फर्ज है, जिसे वह सांसद होके निभा रहे है. फिर भी वह मानते है राजनीति से उनका कोई लेना देना नहीं. उनका अंदाज निराला है, चाहे फिल्मो का हो या, राजनीतिक !
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