मानसून के दौर में कर्ज के बोझ से किसान परेशान, आखिर क्या है समाधान

मानसून के दौर में कर्ज के बोझ से किसान परेशान, आखिर क्या है समाधान
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मानसूनी बारिश के दौर में अक्सर किसान के चेहरे पर प्रसन्नता छाने लगती है। वह बारिश में भीगते हुए भी फसल बुआई और इससे जुड़ी तैयारियां करता है। वह प्रसन्न होता कि अबकि बारिश अच्छी हो तो उसकी फसल लहलहा उठेगी। मगर इस बार ऐसा कुछ हुआ नहीं एक तो मानसून की आमद देरी से हुई जिसपर किसान साहूकार और निजी कर्जदारों के बोझ से परेशान रहे। सार्वजनिक बैंक्स से मिलने वाले कर्ज को लेकर किसान कर्ज माफी की मांग करते रहे और उन्हें आश्वासन मिलते रहे। कर्ज के बोझ के तले अब तक कई किसान आत्महत्याऐं कर चुके हैं।

अब तो क्या महाराष्ट्र क्या मध्यप्रदेश विभिन्न राज्यों में फसल बर्बादी और कर्ज के बोझ के तले दबने के चलते बड़े पैमाने पर किसानों की सांसे थम गई हैं अब उनके घरों में इन किसानों की तस्वीरों पर हार लगा हुआ नज़र आता है, कई घरों में तो अभी भी दर्दभरा कृंदन सुनाई देता है। यदि 19 जून के आंकड़ों पर गौर करें तो मध्यप्रदेश में करीब 29 किसान आत्महत्या कर चुके हैं तो दूसरी ओर महाराष्ट्र राज्य में 42 किसान आत्महत्या कर चुके हैं।

आखिर यह सब क्यों हो रहा है। किसान को न तो उसके लिए गए कर्ज से मुक्ति मिल रही है और न ही वह ठीक तरह से खेती कर पा रहा है। हालांकि लोगों का मानना है कि किसान किसी और कारणों से आत्महत्या करता है और उसे कर्ज से परेशानी व फसल बर्बादी से जोड़ दिया जाता है लेकिन छोटे स्तर पर खेती करने वाला किसान अभी भी परेशान है। मौसम की बेरूखी का सामना करने के बाद जब वह खेती के लिए तैयारी करता है तो उसे खाद और बीज आदि के लिए जूझना पड़ता है जब उसे यह जैसे तैसे मिल जाते हैं तो सिंचाई के लिए पर्याप्त सुविधा न होने और अपेक्षाकृत कम बारिश होने की मुश्किल झेलनी पड़ती है

इसके बाद जब फसल उसके खेत में लहलहाती है और उसकी कटाई की जाती है तो फिर बेमौसम बारिश अनाज को खराब कर देती है। जो अनाज बचता है उसे मंडियों में उसे वाजिब दाम नहीं मिल पाता। कई बार तो किसान फसल की लागत तक नहीं निकाल पाता और लिए गए कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए उसे फिर कर्ज लेना पड़ जाता है। कथित तौर पर सरकारें खेती को लाभ का धन्धा बनाने की बातें करती हैं मगर इसके बाद भी किसान मुश्किलों से घिरा रहता है।

सबसे बड़ी परेशानी यह है कि सार्वजनिक और निजी बैंक्स के बड़े पैमाने पर संचालित होने के बाद भी किसान साहूकारों के चंगुल में फंसा रहता है। ऊॅंची ब्याजदर होने के कारण किसान कर्ज से ऊबर नहीं पाता। जिसके कारण अंततः उसे आत्महत्या करना पड़ती है लेकिन आत्महत्या कोई विकल्प नहीं है ऐसा करके तो वह अपने जीवन को निरर्थक बना देता है और अपनी पीढ़ियों पर आर्थिक तंगी का बोझ डालकर अपना जीवन समाप्त कर लेता है।

आत्महत्या किसी भी परेशानी का समाधान नहीं हो सकती। किसान द्वारा आत्महत्या करने के बाद किसान परिवार को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है यदि किसान आत्महत्या न कर अपनी आय के स्त्रोतों को बढ़ाने का प्रयास करे। फसलों के अलावा दूसरी पैदावार खेत पर करने, जल स्त्रोतों को बढ़ाने और अपनी जमीन पर कृत्रिम जलस्त्रोत सृजित कर मुश्किल हालात में उस जल का आर्थिक लाभ के लिए उपयोग कर उसे दूसरों को सप्लाय किए जाने के ही साथ वह कई और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ा सकता है जिससे उसका अर्थ प्रबंध कुछ सुधर सकता है।

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