मुंबई: बॉम्बे उच्च न्यायालय ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण फैसला दिया। अदालत ने कहा कि एक महिला को 'अपने बच्चे और उसके करियर में से किसी एक का चयन करने के लिए नहीं कहा जा सकता'। इसके साथ ही उच्च न्यायालय ने फैमिली कोर्ट के एक आदेश को रद्द कर दिया। जिसमें मां को अपनी बेटी के साथ पोलैंड शिफ्ट होने पर पाबंदी लगा दी गई थी।
वही जस्टिस भारती डांगरे की सिंगल बेंच महिला द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मां ने अपनी नौ वर्षीय बेटी के साथ पोलैंड के क्राको में जाकर रहने की इजाजत मांगी थी। पुणे में एक प्राइवेट फर्म में काम करने वाली महिला को उसकी कंपनी ने पोलैंड में एक प्रोजेक्ट ऑफर किया था। महिला अब पोलैंड जा सकती है।
पति ने याचिका का विरोध करते हुए दावा किया था कि यदि बच्चे को उससे दूर ले जाया गया तो वह उसे फिर से नहीं देख पाएगा। पति ने इल्जाम लगाया कि महिला का पोलैंड में बसने का एकमात्र मकसद पिता-बेटी के बंधन को तोड़ना था। अधिवक्ताओं ने अपने पड़ोसी देशों, यूक्रेन एवं रूस की वजह से पोलैंड में चल रहे हालात का भी उल्लेख किया। किन्तु अदालत ने कहा कि एक महिला के करियर की संभावनाओं को भी नहीं नकारा जा सकता है। दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के पश्चात् जस्टिस डांगरे ने कहा कि आज तक बेटी की कस्टडी उस मां के पास है, जिसने अकेले ही बच्चे की परवरिश की है तथा लड़की की आयु को देखते हुए, यह आवश्यक है कि उसे अपनी मां के साथ जाना चाहिए। अदालत ने महिला के करियर की संभावनाओं एवं पिता और बेटी के बीच के बंधन के बीच संतुलन बनाने का फैसला किया। अदालत ने कहा, मुझे नहीं लगता कि अदालत को मां को नौकरी करने देने से रोकना चाहिए। अदालत ने कहा कि अनिवार्य तौर पर माता एवं पिता दोनों के हितों के बीच संतुलन बनाना होगा तथा बच्चे के भविष्य को भी ध्यान में रखना होगा।
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