सुनामी में छिना पिता का साया...माँ का छूटा साथ, पीएम ने सुनाई दर्दभरी दास्तान

सुनामी में छिना पिता का साया...माँ का छूटा साथ, पीएम ने सुनाई दर्दभरी दास्तान
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नई दिल्ली: बर्मिंघम में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स में डेविड बेकहम भी इंडिया की तरफ से मेडल की दावेदारी पेश करने वाले है। अब आप सुनकर चौंक गए होंगे कि बेकहम इंडिया के लिए खेलने वाले है, यह कैसे होगा? दरअसल, यह बेकहम इंडियन साइकिलिस्ट हैं। जो अंडमान निकोबार से आते हैं और कॉमनवेल्थ गेम्स के साइकिलिंग इवेंट में इंडिया की तरफ से उतरने वाले है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को कॉमनवेल्थ गेम्स में हिस्सा लेने वाले कुछ खिलाड़ियों से बात की, तो उसमें बेकहम भी एक थे। पीएम मोदी का पहला प्रश्न भी भारतीय साइकिलिस्ट के नाम को लेकर ही था।

पीएम मोदी ने पूछा, आपका नाम तो मशहूर फुटबॉल खिलाड़ी के नाम पर है। लेकिन आप साइकिलिंग करते हैं। लोग भी आपको फुटबॉल खेलने की राय देते होंगे। क्या आपको कभी लगा नहीं कि फुटबॉल ही खेलना चाहिए? इस प्रश्न के जवाब में इंडियन साइकिलिस्ट डेविड बेकहम ने बोला है, मैं अंडमान-निकोबार से आता हूं। यहां फुटबॉल को लेकर बहुत अधिक स्कोप नहीं है। साधन की कमी है। इसलिए इस खेल के प्रति जुनून होने के बावजूद मैं इसे करियर के रूप में अपना नहीं पाया।

 

बेकहम ने कम उम्र में ही माता-पिता को खो दिया था: इंडियन साइकिलिस्ट  डेविड की कहानी किसी प्रेरणा से बिलकुल भी कम नहीं है। वो जब डेढ़ वर्ष थे तो अंडमान-निकोबार में आई सुनामी में उनके सिर से पिता का साया उठ गया। इसके कुछ सालों के उपरांत बेकहम से उनकी मां का साथ भी छूट गया। उनका भी देहांत। जीवन में इतने बड़े सदमे झेलने के बाद भी बेकहम बिखरे नहीं और एक खिलाड़ी के तौर पर अपने करियर को संवारने के काम में लग गए।

प्रधानमंत्री मोदी ने भी इसके लिए खिलाड़ी हौसला अफजाई की और पूछा कि इतने विपरीत हालातों के बावजूद वो खुद को कैसे मोटिवेट रख पाते है। इस पर बेकहम ने कहा, “मुश्किल हालात में दोस्तों ने हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया और कभी पीछे नहीं हटने दिया। वो हमेशा मुझसे कहते हैं कि आपको मेडल जीतकर आना है। उनके हौसले और लोगों की उम्मीदों के दम पर ही मैंने अंडमान से निकलकर भारत की साइकिलिंग टीम तक का सफर तय किया है।”

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