आपने कई बार सुना होगा कि सांप और नेवले की कभी नहीं बनी है और ना ही बनेगी. जैसे ही दोनों एक दूसरे के सामने आते हैं वो लड़ाई करने पर उतारू हो जाते हैं. इस लड़ाई में अक्सर देखा जाता है कि नेवला सांप को मार देता है. लेकिन इस लड़ाई में कभी सांप का पलड़ा भारी होता है कभी नेवले का, इस दौरान दोनों ही लहू लुहान हो जाते है.
आपको बता दें, भारत में पाया जाने वाले भूरे नेवले पर सांप के जहर का असर भी कम होता है. लेकिन यह भी माना जाता है कि कि इस खूनी लड़ाई के बाद ज्यादातर नेवले खुद ही मर जाते हैं क्योंकि सांप के जहर का असर उन पर कुछ समय के बाद होता है. पर ऐसा बहुत ही कम होता है. तो चलिए जानते हैं ऐसा क्यों होता है.
* सांप वेसे फुर्तीला होता है, लेकिन नेवला बहुत अधिक चपलता और फुर्ती से सांप के साथ लड़ता है और पूरा प्रयास करता है कि सांप उसे डस नही पाए, उसका यही फुर्तीला पन उसे सांप के जहर से बचाता है.
* इस युद्ध मे सांप ने नेवले को डस भी लिया तो भी नेवले पर उसका असर नही होता है क्योंकि नेवले के पास विशेष एसिट्लोक्लिन रिफ्लेक्स होते हैं जो सांप के जहर, जिसमें न्यूरोटाक्सिन होता है, जो सांप के जहर के लिए प्रतिरक्षित होते है. यह रिसेप्टर की ढाल इसके उत्परिवर्तित डीएनए है, के कारण बन जाती है.
* नेवले का DNA अल्फा और बीटा ब्लॉकर्स प्रस्तुत करता है और जो जहर के रेसेप्टर्स के साथ बधंने में अप्रभावी होता है. इस वजह से नेवले की जान अधिकांशतः बची रहती हैं.
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