'ढूंढकर लाओ मनमोहन सिंह का वो पत्र..', ASI अधिकारियों पर क्यों भड़की हाई कोर्ट ?

'ढूंढकर लाओ मनमोहन सिंह का वो पत्र..', ASI अधिकारियों पर क्यों भड़की हाई कोर्ट ?
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नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अधिकारियों पर नाराजगी जताई क्योंकि वे वह फाइल पेश नहीं कर सके जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के हस्ताक्षर थे। इस फाइल में मनमोहन सिंह का वह फैसला था जिसमें उन्होंने जामा मस्जिद को "संरक्षित स्मारक" घोषित नहीं करने का निर्णय लिया था। इस फैसले के कारण जामा मस्जिद की ज़मीन वक्फ बोर्ड के अधिकार में चली गई, लेकिन अब वह फाइल गायब है। कोर्ट ने अधिकारियों को चेतावनी दी कि अक्टूबर में अगली सुनवाई तक यह फाइल पेश की जाए।

कोर्ट उन जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जिनमें जामा मस्जिद को 'संरक्षित स्मारक' घोषित करने और उसके आसपास के अतिक्रमण हटाने की मांग की गई है। दरअसल, संरक्षित स्मारक घोषित होते ही जामा मस्जिद का रखरखाव, केंद्र सरकार और ASI के अधीन आ जाएगा, जिस  पर अभी वक्फ का नियंत्रण है। जस्टिस प्रतिभा एम सिंह की अध्यक्षता वाली बेंच ने ASI के अधिकारियों को पहले दिए गए आदेशों का पालन न करने पर सवाल उठाया और मूल फाइल पेश न करने पर कड़ी नाराजगी जताई। कोर्ट ने निर्देश दिया कि ASI का एक सक्षम अधिकारी इस मामले से जुड़े सभी तथ्यों को सामने लाए और हलफनामा दायर करे।

इस मामले की शुरुआत 2014 में हुई, जब सुहैल अहमद खान और अजय गौतम ने जनहित याचिकाएं दायर कीं। इन याचिकाओं में जामा मस्जिद के 'शाही इमाम' की उपाधि पर आपत्ति जताई गई और मस्जिद को ASI यानी केंद्र सरकार के अधीन लाने की मांग की गई। ASI ने अदालत में कहा कि 2004 में जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित करने का मुद्दा उठाया गया था। हालांकि, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 20 अक्टूबर 2004 को शाही इमाम को आश्वासन दिया था कि ऐसा नहीं होगा। इस आश्वासन के बाद मस्जिद वक्फ बोर्ड के अधिकार में रही और ASI के दायरे में नहीं आई। अब जब यह सवाल उठा है कि जामा मस्जिद ASI के अधीन क्यों नहीं है, तो कोर्ट ने ASI को यह निर्देश दिया है कि वह वह फाइल पेश करे जिसमें मनमोहन सिंह का यह निर्णय दर्ज है।

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