हार नहीं मानूंगा रार नहीं ठानूंगा,
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ,
गीत नया गाता हूँ।
देश के तीन बार प्रधानमंत्री रहे श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सचमुच कभी 'हार' नहीं मानी, फिर चाहे उनका व्यक्तिगत जीवन हो या राजनितिक। उनके प्रत्येक फैसले में उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और उसे पूरा करने का संकल्प स्पष्ट दिखाई पड़ता था। अपनी दमदार आवाज और भाषण के दम पर श्री वाजपेयी लगभग पांच दशक तक राजनीति के शिखर पर कायम रहे। वर्ष भर पहले आज ही के दिन उन्होंने अपने जीवन की अंतिम सांस ली और एक नए सफर पर निकल गए, वे मरे नहीं, क्योंकि 'अटल' कभी मरते नहीं। वे जीवित हैं और रहेंगे अपनी कविताओं में अपने विचारों में और देशवासियों को प्रेरणा देते रहेंगे। आज उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर हम आपके लिए लाए हैं, उनकी सुप्रसिद्ध कविता :-
मौत से ठन गई
ठन गई
मौत से ठन गई
जूझने का मेरा इरादा न था
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ
तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा
मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है
पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई
मौत से ठन गई
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