मुंबई: मुंबई की मुस्लिम छात्राओं ने अपनी ताजा याचिका में न केवल हिजाब बल्कि चेहरे को ढकने वाले बुर्के की भी अनुमति मांगी है। याचिकाकर्ताओं ने एक निजी कॉलेज द्वारा शुरू की गई नई यूनिफॉर्म नीति को चुनौती देते हुए ये मांगें की हैं, जिसमें उन्हें हिजाब जैसे धार्मिक परिधान पहनने से मना किया गया है। बता दें कि, अपनी रूढ़िवादी सोच के लिए पहचाने जाने वाले इस्लामी मुल्क सऊदी अरब ने भी परीक्षा हाल में हिजाब-बुर्के पर बैन लगा रखा है और स्कूल यूनिफार्म के सख्ती से पालन पर जोर दिया है। मुस्लिम मुल्क ट्यूनीशिया ने भी बुर्के पर बैन लगा रखा है, क्योंकि ये व्यक्ति की पहचान छुपाता है। दरअसल, ट्यूनीशिया में बुर्का पहने एक व्यक्ति ने आतंकी हमला कर दिया था, जिसके बाद देश ने सार्वजनिक स्थानों पर बुर्का बैन ही कर दिया। इसके अलावा अजरबैजान, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान भी ऐसे मुस्लिम मुल्कों में शामिल हैं, जिन्होंने स्कूलों में बुर्के को बैन किया है। कजाकिस्तान में तो ये नियम है कि, अगर कोई छात्रा हिजाब पहनकर स्कूल आती है, तो उसके माता-पिता को सजा के रूप में जुर्माना भरना पड़ता है। सजा के रूप में पहली बार 10 कजाखिस्तानी टेंगे देने पड़ते हैं। हालाँकि, धर्मनिरपेक्ष देश भारत में इसको लेकर पिछले 3 सालों से विवाद चल रहा है, बात सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गई है।
उल्लेखनीय है कि आचार्य मराठे कॉलेज नामक मुंबई के एक कॉलेज के नौ छात्रों ने कॉलेज प्रबंधन द्वारा यूनिफॉर्म नीति वापस लेने से इनकार करने के बाद बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। रिपोर्ट के अनुसार, नौ याचिकाकर्ताओं में दूसरे और तीसरे वर्ष के स्नातक छात्र शामिल हैं। मुंबई के चेंबूर उपनगर में स्थित इस कॉलेज ने डिग्री कॉलेज के छात्रों के लिए नई यूनिफॉर्म नीति शुरू की थी। निर्देश में छात्रों को परिसर के भीतर हिजाब, बुर्का, नकाब और अन्य धार्मिक कपड़े पहनने से रोक दिया गया था। इसमें कहा गया था कि ड्रेस कोड जून 2024 से शुरू होने वाले शैक्षणिक वर्ष में लागू होगा। यह विकास जूनियर कॉलेज के छात्रों के लिए इसी तरह की यूनिफॉर्म नीति लागू होने के एक साल बाद हुआ है।
कॉलेज ने मई की शुरुआत में यह आदेश पारित किया था जिसे ऑनलाइन मैसेजिंग ऐप के ज़रिए छात्रों के बीच प्रसारित किया गया था। आदेश में कहा गया था कि, "आपको कॉलेज के ड्रेस कोड का पालन करना होगा, औपचारिक और सभ्य पोशाक जो किसी के धर्म को उजागर नहीं करेगी जैसे कि बुर्का, नकाब, हिजाब, टोपी, बैज, स्टोल आदि नहीं। कॉलेज परिसर में लड़कों के लिए केवल फुल या हाफ शर्ट और सामान्य पतलून और लड़कियों के लिए कोई भी भारतीय/पश्चिमी (लेकिन ज्यादा खुली हुई नहीं) करने वाली पोशाक। लड़कियों के लिए चेंजिंग रूम उपलब्ध है।"
इस बीच, अपनी याचिका में मुस्लिम छात्राओं ने कहा है कि यह आदेश “सत्ता के दिखावटी बहाने के अलावा कुछ नहीं है” और “मनमाना, अनुचित, कानून के विरुद्ध, विकृत और निरर्थक है”। याचिका में अदालत के समक्ष तर्क दिया गया है कि बुर्का, हिजाब, नकाब, टोपी और स्टोल इस्लाम का अभिन्न अंग हैं और इस तरह का ड्रेस कोड उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। उल्लेखनीय बात यह है कि हिजाब आमतौर पर बालों और गर्दन को ढकता है, नकाब आंखों को छोड़कर चेहरे को ढकता है, और बुर्का पूरे शरीर को ढकने वाला पर्दा है।
वकील अल्ताफ खान द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि, "नकाब और हिजाब याचिकाकर्ताओं की धार्मिक आस्था का अभिन्न अंग हैं और कक्षा में नकाब और हिजाब पहनना उनकी स्वतंत्र इच्छा, पसंद और निजता के अधिकार का हिस्सा है।" इसमें आगे कहा गया कि, "कॉलेज/ट्रस्ट ने यह नहीं बताया कि कानून के किस प्रावधान के तहत उन्होंने किसी खास कपड़े/पोशाक पर प्रतिबंध/प्रतिबंध लगाया है। इसलिए, नोटिस/निर्देश को रद्द किया जाना चाहिए।" रिपोर्टों के अनुसार, न्यायमूर्ति ए एस चांदुरकर और न्यायमूर्ति राजेश पाटिल की खंडपीठ 18 जून को मामले की सुनवाई कर सकती है।
यह ध्यान देने योग्य है कि शैक्षणिक संस्थानों में यूनिफॉर्म को लेकर एक बड़ा विवाद राष्ट्रीय चर्चा का विषय बन गया था, जब कर्नाटक में कई मुस्लिम छात्रों ने " पहले हिजाब, फिर किताब" लिखे बैनरों के साथ विरोध प्रदर्शन किया था ।
कर्नाटक में हिजाब विवाद
फरवरी 2022 में, उडुपी के एक पीयू कॉलेज की कुछ मुस्लिम छात्राओं ने कर्नाटक उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर उन्हें हिजाब पहनकर कक्षाओं में आने की अनुमति देने की मांग की थी। कॉलेज प्रबंधन द्वारा यह स्पष्ट करने के बाद कि हिजाब यूनिफॉर्म का हिस्सा नहीं है, उन्हें कक्षाओं में प्रवेश से वंचित कर दिया गया। इसके बाद 'छात्रों' ने बुर्का पहनकर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। कट्टरपंथी संगठन कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI) के संपर्क में आने के बाद दिसंबर 2021 से उन्होंने यूनिफॉर्म नियमों की अवहेलना करते हुए अपने स्कूल और कॉलेज में हिजाब और बुर्का पहनना शुरू कर दिया था।
15 मार्च 2022 को कर्नाटक उच्च न्यायालय ने माना कि हिजाब इस्लाम में अनिवार्य प्रथा नहीं है और वर्दी धर्म के अधिकार पर एक उचित प्रतिबंध है। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। अगस्त 2022 में सर्वोच्च न्यायालय की दो न्यायाधीशों की पीठ ने विभाजित फैसला सुनाया, जिसके कारण मामले को सर्वोच्च न्यायालय की एक बड़ी पीठ को भेज दिया गया। इस पीठ का गठन अभी लंबित है। कर्नाटक में हिजाब विवाद शुरू होने के बाद से ही इस बात की चिंता जताई जा रही है कि यह और भी बढ़ सकता है, क्योंकि मुस्लिम छात्राएं न केवल हिजाब के लिए बल्कि पूरे शरीर को ढकने वाले पर्दे के लिए भी अनुमति मांग सकती हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि अब एक निजी कॉलेज की मुस्लिम छात्राओं द्वारा दायर नवीनतम याचिका में इसकी मांग की जा रही है।
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