उत्तराखंड के जंगलों में 70 वर्ष बाद दिखी उड़ने वाली दुर्लभ गिलहरी

उत्तराखंड के जंगलों में 70 वर्ष बाद दिखी उड़ने वाली दुर्लभ गिलहरी
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नई दिल्ली: पंजों के फर को पैराशूट के प्रकार उपयोग करके उड़ने वाली दुर्लभ गिलहरी उत्तरकाशी के गंगोत्री नेशनल पार्क में नजर आई है. उत्तराखंड वन अनुसंधान सेंटर के सर्वेक्षण में राज्य के तेरह फारेस्ट डिवीजनों में से अठारह स्थानों पर यह गिलहरी कर आई है, जबकि IUCN की रेड लिस्ट में वूली गिलहरी सत्रह वर्ष पहले विलुप्त मान ली गई थी. हालांकि, देहरादून वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक ने भागीरथ घाटी में इसके होने की बात बोली है और इसके दुर्लभ तस्वीर भी मिले हैं. 

यह वूली गिलहरी अधिकतर ओक, देवदार और शीशम के पेड़ों पर अपने घोंसले बनाती रहती हैं. सुनहरे, भूरे और स्याह कलर में उड़न गिलहरियां नजर आई हैं. कोटद्वार के लैंसडोन में तिस-पच्चास सेंटीमीटर लंबी उड़न गिलहरी भी नजर आई है. गले पर धारी होने के वजह से स्थानीय लोग पट्टा बाघ भी इनको बोलते हैं. पहले इन गिलहरियां की संख्या अधिक थी लेकिन कटते जंगल और ग्लोबल वार्मिंग के वजह सर इनकी संख्या कम होने लगी है. अब, यह गिलहरी वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के शेड्यूल-2 में दर्ज कर ली गयी हैं. 

बता दें की अपने पंजों के फर को पैराशूट की तरह उपयोग करके ये चार सौ से पांच सौ मीटर मीटर तक ग्लाइड कर सकती हैं. इन गिलहरियों पर शोध करने वाले ज्योति प्रकाश बताते हैं कि दस से बारह दिन तक जंगल में इनका घोंसला खोजने में लग गए. दरअसल फिर सात से आठ दिन निरंतर कैमरा ट्रैप लगाने के बाद उड़न गिलहरी की कुछ तस्वीर और वीडियो मिल पाए हैं.

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