इस वजह से बालाजी के नाम से जाना जाता है तिरुपति बालाजी मंदिर

इस वजह से बालाजी के नाम से जाना जाता है तिरुपति बालाजी मंदिर
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तिरुपति बालाजी मंदिर भगवान विष्णु के अवतार वेंकटेश्वर या बालाजी को समर्पित है। यह मंदिर आंध्र प्रदेश के तिरुमला पहाड़ी पर स्थित है, जिसे सात चोटियों वाली वैंकट पहाड़ी भी कहा जाता है। यह जगह बहुत ही धार्मिक और पवित्र मानी जाती है, जहां हर साल लाखों भक्त दर्शन करने आते हैं।

भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की कथा: पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया था, तो उसमें से कई रत्नों के साथ देवी लक्ष्मी भी प्रकट हुईं। उनके सौंदर्य और आकर्षण के कारण सभी देवता, असुर और मनुष्य उनसे विवाह करना चाहते थे, लेकिन देवी लक्ष्मी ने प्रभु विष्णु को अपना पति चुना और उन्हें वरमाला पहनाई। विष्णु जी ने देवी लक्ष्मी को अपने वक्षस्थल में स्थान दिया, लेकिन ह्रदय में नहीं। ऐसा माना जाता है कि विष्णुजी का ह्रदय संसार के पालन के लिए जिम्मेदार था और उसमें किसी प्रकार का व्यवधान नहीं होना चाहिए था, इसलिए लक्ष्मीजी को वक्ष पर स्थान मिला।

भृगु ऋषि का क्रोध और विष्णुजी का धैर्य: एक और कथा के अनुसार, भृगु ऋषि ने एक बार गुस्से में आकर भगवान विष्णु के वक्षस्थल पर ठोकर मार दी। विष्णु जी ने इसे सहन करते हुए ऋषि के पैर पकड़कर माफी मांगी। इससे लक्ष्मीजी नाराज हो गईं और उन्होंने विष्णुजी को छोड़ दिया। बाद में, विष्णुजी ने श्रीनिवास के रूप में धरती पर जन्म लिया और लक्ष्मीजी ने पद्मावती के रूप में जन्म लिया। दोनों का विवाह हुआ, और भृगु ऋषि ने आकर लक्ष्मीजी से माफी मांगी।

कुबेर से उधार और भक्तों का योगदान: विवाह के दौरान, विष्णुजी ने कुबेर से धन उधार लिया, जिसे वह कलियुग के अंत तक ब्याज सहित चुकाने का वचन दिया। ऐसा कहा जाता है कि जब भी भक्त तिरुपति बालाजी में कुछ दान करते हैं, तो वे भगवान विष्णु के इस ऋण को चुकाने में योगदान देते हैं। यही कारण है कि भगवान बालाजी अपने भक्तों को कभी खाली हाथ नहीं लौटाते।

तिरुमला की सात पहाड़ियां: तिरुमला पहाड़ी की सात चोटियों को आदि शेष नाग के फनों का प्रतीक माना जाता है। इन चोटियों के नाम शेषाद्रि, नीलाद्रि, गरू़डाद्रि, अंजनाद्रि, वृषभाद्रि, नारायणाद्रि और वैंकटाद्रि हैं। यही वह स्थान है, जहां भगवान वेंकटेश्वर या बालाजी का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है।

बालाजी' नाम का अर्थ: 'बालाजी' नाम का अर्थ 'बाल' (युवक) और 'आजी' (स्वामी) से मिलता है, जिसका तात्पर्य है 'युवक स्वामी'। यह नाम भगवान विष्णु के एक विशेष रूप को दर्शाता है, जो उनके युवा और सुलभ रूप को प्रकट करता है। 

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