पहले भी मौत को हरा चुके है पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी

पहले भी मौत को हरा चुके है पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी
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नई दिल्ली। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जितने अच्छे राजनेता थे उतने ही अच्छे लेखक भी थे। उनकी अधिकतर कविताएं उनके व्यक्तित्व की परिचायक है। 

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लम्बे समय से बीमार से जूझ रह अटल बिहारी को जब बुधवार के दिन लाइफ सपॉर्ट पर रखा गया तो पुरे देश की धड़कने तेज हो गयी। इस खबर के सामने आने के बाद से पूरे देश में उनके समर्थक उनके लिए प्राथना कर रहे है। लेकिन बहुत कम लोग जानते है कि अटल जी इसके पहले भी मौत की आखों में आखे डाल कर उससे लड़ चुके है। उस वक्त उनकी तबियत बेहद ख़राब हो गयी थी। 

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उस वक्त अटल जी ने एक कविता भी लिखी थी जिसका शीर्षक था मौत से ठन गई , इस कविता की कुछ पंक्तिया इस प्रकार है। 


ठन गई! 
मौत से ठन गई! 

जूझने का मेरा इरादा न था, 
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था, 

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, 
यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई। 

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, 
जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं। 

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए, 
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए। 

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है, 
नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है। 

पार पाने का क़ायम मगर हौसला, 
देख तेवर तूफ़ां का, तेवरी तन गई। 

मौत से ठन गई।

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