हामिद अली मुराद, एक ऐसा नाम जिससे शायद बहुत से लोग परिचित न हों, लेकिन भारतीय सिनेमा में उनका योगदान बेमिसाल है। 1911 में रामपुर में जन्मे मुराद बॉलीवुड में एक प्रमुख चरित्र अभिनेता बन गए, उन्होंने 300 से ज़्यादा फ़िल्मों में एक ही किरदार निभाया।
पांच दशकों का करियर
मुराद की फ़िल्मों में यात्रा 1940 के दशक में शुरू हुई और पाँच दशकों तक चली, जिसके दौरान उन्होंने 500 से ज़्यादा फ़िल्मों में काम किया, जिनमें से ज़्यादातर में उन्होंने चरित्र भूमिकाएँ निभाईं। उन्हें ख़ास तौर पर कानूनी अधिकारियों, ख़ास तौर पर जजों की भूमिका निभाने के लिए जाना जाता था, उन्होंने 300 से ज़्यादा फ़िल्मों में भूमिकाएँ दोहराईं।
सहायक अभिनेता, फिर भी स्टार
अंदाज़, आन, देवदास, मुगल-ए-आज़म, यादों की बारात, मजबूर, कालिया और शहंशाह जैसी कई हिट फ़िल्मों का हिस्सा होने के बावजूद मुराद को कभी मुख्य भूमिका निभाने का मौक़ा नहीं मिला। वह सहायक भूमिकाएँ निभाकर संतुष्ट थे, लेकिन दिल से वह हमेशा मुख्य अभिनेता बनना चाहते थे।
लेखक से अभिनेता बने
मुराद को लिखने का शौक था, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। नवाब के खिलाफ़ एक विरोध प्रदर्शन में भाग लेने के बाद उन्हें रामपुर से भागना पड़ा और उनका परिवार सिर्फ़ 24 घंटे में मुंबई पहुंच गया। यहीं उनकी मुलाक़ात महबूब ख़ान से हुई, जिन्होंने उन्हें लेखक बनने के बजाय अभिनेता बनने के लिए राज़ी किया।
विरासत जीवित है
मुराद के बेटे रजा मुराद अपने आप में एक सफल अभिनेता हैं, जिन्होंने पिछले 40 सालों में 100 से ज़्यादा फ़िल्मों में काम किया है। हामिद अली मुराद का 1997 में 85 साल की उम्र में निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत उनके काम और उनके बेटे की उपलब्धियों के ज़रिए ज़िंदा है।
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