नई दिल्ली: सियासी दलों की तरफ से किए जाने वाले चुनावी वादे इन दिनों निर्वाचन आयोग की नजर पर हैं। आयोग ने एक प्रस्ताव रखा जिसमें कहा गया है कि हर एक पार्टी को इसकी जानकारी भी देनी होगी कि वह अपने चुनावी वादे को पूरा करने के लिए धन कहां से हासिल करेगी। हालांकि, गौर करने वाली बात ये है कि इस प्रस्ताव का समर्थन सिर्फ भाजपा और शिरोमणि अकाली दल (SAD) ने ही किया है। यानी केवल ये दोनों पार्टियां ही ये बताने को राजी हुईं हैं कि, वो अपने चुनावी वादों को पूरा कैसे करेगी और धन कहाँ से लाएगी।
चुनावी वादे करेंगे, लेकिन उन्हें पूरा करने की योजना नहीं बताएंगे:-
वहीं, देश की सबसे पुरानी राजनितिक पार्टी कांग्रेस ने इस प्रस्ताव को अनावश्यक और अव्यवहारिक बताया है और निर्वाचन आयोग से इसे लेकर सवाल भी किए हैं। कांग्रेस ने यह पूछा कि यदि कोई दल अपने चुनावी वादे को पूरा नहीं कर पाता है तो इस कानून को कैसे लागू किया जाएगा। कांग्रेस ने आयोग को भेजे अपने जवाब में कहा कि चुनावी वादों को पूरा करना सियासी इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है। इसके साथ ही किसी भी मामले में झूठे वादों का पर्दाफाश तो हो ही जाता है। चुनाव आयोग के प्रस्ताव पर जवाब देखने वालों के मुताबिक, भाजपा के विचार पीएम नरेंद्र मोदी की 'रेवड़ी कल्चर' वाली टिप्पणी से मेल कहते हैं। भाजपा ने अपना जवाब दाखिल करने के लिए 18 अक्टूबर से आगे का वक़्त मांगा था। DMK, AAP और AIMIM की तरफ से भी इस प्रस्ताव पर कांग्रेस जैसी ही प्रतिक्रियाएं आई हैं। यानी ये पार्टियां चुनावों में ढेर सारे लोक लुभावन वादे तो करना चाहती हैं, किन्तु ये बताने को राजी नहीं कि वो वादे कैसे पूरे किए जाएंगे और उनके लिए धन कहाँ से आएगा।
कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी (CPI-M) की तरफ से भी चुनाव आयोग के इस प्रस्ताव का विरोध किया गया है। CPI-M के राष्ट्रीय महासचिव सीताराम येचुरी ने अपने जवाब में कहा है कि, 'संविधान का अनुच्छेद 324 निर्वाचन आयोग को चुनाव के वक़्त सियासी दलों की घोषणाओं और वादों के मूल्यांकन का अधिकार नहीं देता है। आदर्श आचार संहिता में प्रस्तावित संशोधन और चुनावी वादों के वित्तीय प्रभावों के खुलासे की कोशिश से आयोग राजनीतिक-नीतिगत मामलों में शामिल होगा, जो इसके दायरे में नहीं आता है।'
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