महामारी कोरोना वायरस ने बहुत सारे लोगों की धारणा बदल दी है. शहर की अनजानी दुनिया की जगह अपनी मिट्टी से लगाव बढ़ा है और उसी में भविष्य दिख रहा है. आखिर हो भी क्यों न, आय के साधन की तलाश में कल गांव से पलायन कर जिस शहर गए थे, वहां भूखे मरने की नौबत आ गई. सहारा बना वही गांव, जहां आते ही आंखों में जीवन की चमक लौट आई है.
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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि मध्यप्रदेश के विदिशा से करीब 20 किलोमीटर दूर नेशनल हाईवे 146 के किनारे रामपुर चक्कपाटनी के ग्रामीण लॉकडाउन के बीच शहरों से लौट आए हैं. करीब 100 घरों की बस्ती में पत्थर की खदानें शुरू होने से परंपरागत जलस्नोत सूख गए थे. इसका सीधा असर खेती पर पड़ा और छोटे किसानों व मजदूरों को जीविका चलाने के लिए बड़े शहरों का रुख करना पड़ा. अब लॉकडाउन के कारण लोग परिवार सहित गांव लौटे हैं. इस विपदा में सब साथ खड़े हैं. ठान लिया है कि खुद के साथ गांव की भी तकदीर और तस्वीर बदल देंगे. उन्नत खेती और रोजगार के अन्य साधनों से इसे संभव करेंगे.
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अगर आपको नहीं पता तो बता दे कि सिंचाई के साधन खत्म होने पर करीब 35 बीघा जमीन के मालिक राजेश पाठक परिवार की आजीविका चलाने कई साल पहले गांव छोड़कर विदिशा आए थे. उनका बड़ा बेटा तरुण शास्त्रों की शिक्षा लेकर धार्मिक कर्मकांड करने लगा. छोटे बेटे ने पढ़ाई के साथ ही दूसरे शहर में निजी कंपनी में नौकरी शुरू कर दी. सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन अचानक कोरोना संकट ने सब कुछ बदल दिया. लॉकडाउन लागू हुआ तो भविष्य को लेकर आशंकित राजेश दोनों बेटों के साथ गांव लौट आए हैं. अब गांव में ही खेती करेंगे.
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