हिंदू धर्म में सभी देवताओं में से प्रथम पूजनीय देवता भगवान गणेश जी को माना गया है। जी हाँ और आप सभी जानते ही होंगे गौरी पुत्र गणेश जी को विघ्नहर्ता भी कहते हैं, इस वजह से किसी भी मांगलिक कार्य की शुरुआत श्री गणेश से होती है, ताकि बिना किसी बाधा के कार्य पूर्ण हो। हालाँकि क्या आप जानते हैं भगवान शिव जी ने भी गणेश जी की पूजा की थी? जी दरअसल पौराणिक ग्रंथों में भगवान शिव द्वारा अपने पुत्र गणेश की पूजा से जुड़ी कथा का उल्लेख मिलता है। आज हम आपको उसी के बारे में बताने जा रहे हैं।
त्रिपुरासुर को मिला वरदान- पौराणिक कथा के अनुसार, त्रिपुरासुर नामक असुर ने भगवान ब्रह्माजी से अमरता का वरदान मांगा। तब ब्रह्माजी ने कोई और वरदान मांगने को कहा। तब त्रिपुरासुर ने कहा, हे प्रभु! हमारे लिए तीन पुरिया वरदान में दे दीजिए। जिस पर ब्रह्माजी ने तथास्तु कह कर वरदान दे दिया। वरदान मिलने के बाद तारकाक्ष के लिए स्वर्णपुरी, कमलाक्ष के लिए रजतपुरी और विद्युन्माली के लिए लौहपुरी का निर्माण हुआ। यही वजह है कि इन तीन असुरों को त्रिपुरासुर कहा जाता था। तीनों भाइयों ने देवताओं को सताना शुरू कर दिया। त्रिपुरासुर के सताने से सभी देवता परेशान हो गए। त्रिपुरासुर का वध करने के लिए किसी में भी इतनी शक्तियां नहीं थी। तब भगवान शिवजी आगे आए।
देवताओं ने अपनी आधी शक्ति भगवान शिव को समर्पित कर दी। इसके बाद सभी देवताओं ने मिलकर संहार की सारी लीला रची। महादेव ने उस असुर नगर को देखा। भगवान शिव ने सभी जतन कर लिए, लेकिन उन असुरों का वध करने में असफल रहे। तब नारदजी ने भगवान शिव को कहा कि आप गणेशजी की पूजा किए बगैर युद्ध करने चले आए, इसलिए आप युद्ध में विजय प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। तब शिवजी ने अपने पुत्र गणेश की पूजा की और लड्डुओं का भोग लगाया। अंत में भगवान शिव त्रिपुरासुर का वध करने में सफल हो गए।
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