कहते हैं जो मनुष्य सुबह,दोपहर और सायं तीनों संध्याओं के समय प्रतिदिन गणेश जी के बारह नामों का पाठ करता है, उसे कभी भी विघ्न का भय नहीं होता. इसी के साथ इन नामों के स्मरण उसके लिए सभी सिद्धियों का उत्तम साधक बन जाते हैं. कहा जाता है, इन नामों के जप से विद्यार्थी, विद्या, धनार्थी धन,पुत्रार्थी अनेक पुत्र और मोक्षार्थी मोक्ष पाता है और इसी के साथ इस गणपतिस्रोत का भी नित्य जप करना चाहिए. वहीं ऐसा भी कहते हैं कि ऐसा करने से जपकर्ता को छ: महीने में अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है. इसी के साथ एक वर्ष तक जप करने से मनुष्य सिद्धि को प्राप्त कर लेता है और जो इस स्रोत को लिखने के बाद आठ ब्राह्मणों को अर्पित करता है उसे गणेश जी की कृपा से सम्पूर्ण विद्या का लाभ मिल जाता है.
संकष्टनाशनस्तोत्रम् नारद उवाच-
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्. भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायु: कामार्थसिद्धये.
प्रथमं वक्रतुंडं च एकदंतं द्वितीयकम्. तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्.
लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च. सप्तमं विघ्नराजेंद्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम्.
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्. एकादशं गणपति द्वादशं तु गजाननम्.
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं य: पठेन्नर:. न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं परम्.
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्. पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम्.
जपेद्रणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्. संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय:.
अष्टभयो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा य: समर्पयेत्. तस्य विद्या भवेत् सर्वा गणेशस्य प्रसादत:.
अर्थ है- नारद जी कहते हैं पहले मस्तक झुकाकर गौरीपुत्र विनायक देव को प्रणाम करके प्रतिदिन आयु, अभीष्ट मनोरथ और धन आदि प्रयोजनों की सिद्धि के लिए भक्तावास गणेश जी का स्मरण करें,पहला नाम 'वक्रतुंड' है दूसरा 'एकदंत' है, तीसरा 'कृष्णपिंगाक्ष' है, चौथा 'गजवक्त्र' है, पांचवां 'लम्बोदर', छठा 'विकट', सातवां 'विघ्नराजेंद्र', आठवां 'धूम्रवर्ण', नौवां 'भालचंद्र', दसवां 'विनायक', ग्यारहवां 'गणपति' और बारहवां नाम 'गजानन' है .'
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इस वजह से हनुमान और भैरव बाबा का नाम सुनते ही भाग जाते हैं भूत-प्रेत