आजकल सड़क से लेकर संसद तक मुजफ्फरपुर बालिका गृह का मामला छाया हुआ है। एक एनजीओ के संरक्षण में चलने वाले शेल्टर होम में बच्चियों के साथ यौन दुष्कर्म का मामला दहला देने वाला है। एक बार फिर सब सड़कों पर हैं। विरोध हो रहा है, आरोपी गिरफ्तार भी कर लिया गया। उसे सजा भी होगी? लेकिन इस बात की क्या गारंटी है कि फिर कोई मुजफ्फरपुर नहीं होगा। फिर कोई बच्ची निर्भया नहीं बनेगी।
चैलेंज का फितूर या जान का जोखिम
दरअसल,जब ऐसे मामले सामने आते हैं, तब—तब जनआक्रोश सड़कों पर दिखाई देता है। वादे होते हैं, बच्चियों और महिलाओं की सुरक्षा के, लेकिन अंत वही ठाक के तीन पात। कुछ ही समय बाद हम सब कुछ भूल जाते हैं और फिर फिर ऐसा ही मामला सामने आकर हमें फिर आक्रोशित कर देता है। फिर सड़क से संसद तक नारेबाजी होती है, आंदोलन होता है और फिर सब शांत हो जाता है। निर्भया, उन्नाव, कठुआ, मंदसौर और अब मुजफ्फरपुर। अब अगला न जाने कौन सा शहर होगा, जहां किसी मासूम की अस्मत को तार—तार किया जाएगा। अभी हो हल्ल हो रहा है, लेकिन कुछ समय बाद सब शांत हो जाएगा और एक और निर्भया, आसिफा या दिव्या सामने होगी।
EDITOR DESK: हंगामा क्यों है बरपा?
यहां बड़ा सवाल यह है कि आखिर कब तक ऐसी ही घटनाएं होती रहेंगी। कब तक निर्भयाएं सामने आती रहेंगी। क्या कभी यह सिलसिला थमेगा? क्या कोई दिन होगा, जब हमारी बेटियां घर से बाहर जाते नहीं डरेंगी। जब वे हर जगह खुद को महफूज समझेंगी और किसी पर भरोसा करना उनके लिए घातक साबित नहीं होगा?
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