भगवान शब्द की परिभाषा क्या है ? इसे जानने के लिए हमें उस शब्द पर विचार धारा करना है . उसमें प्रकृति और प्रत्यय रूप 2 शब्द हैं–भग + वान् .जो सर्वज्ञ –सभी वस्तुओं का ज्ञाता, तथा सभी वस्तुओं के आतंरिक रहस्यों का वेत्ता है . इसलिए वे प्रकृति –माया के गुणों से रहित होने के कारण निर्गुण और स्वाभाविक ज्ञान ,बल , क्रिया ,वात्सल्य ,कृपा ,करुणा आदि अनंत गुणों के आश्रय होने से सगुण भी हैं .
ऐसे भगवान् को ही परमात्मा परब्रह्म ,श्रीराम ,कृष्ण, नारायण,शि ,दुर्गा, सरस्वती आदि भिन्न भिन्न नामों से पुकारे जाते है . इसीलिये वेद वाक्य है कि ” एक सत्य तत्त्व भगवान् को विद्वान अनेक प्रकार से कहते हैं–
“एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति .”
ऐसे भगवान् की भक्ति करने वाले को भक्त कहते है . जैसे भक्त भगवान के दर्शन के लिए वयाकुल रहता है और उनका दर्शन करने भी जाता है . वैसे ही भगवान् भी भक्त के दर्शन हेतु जाते हैं | भगवान ध्रुव जी के दर्शन की इच्छा से मधुवन गए थे –
“मधोर्वनं भृत्यदिदृक्षया गत
जिस तरह भक्त भगवान की भक्ति करता है वैसे ही भगवान् भी भक्तों की भक्ति करते हैं इसीलिये उन्हे भक्तों की भक्ति करने वाला कहा गया है.