अहमदाबाद: गोधरा अग्निकांड कांड के आरोपियों को किसी भी प्रकार की राहत प्रदान करने का गुजरात सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में विरोध किया है। सरकार ने सोमवार (20 फ़रवरी) को शीर्ष अदालत को बताया है कि इससे जघन्य कोई अपराध नहीं हो सकता, जिसमे 59 लोगों को जिन्दा जला दिया जाए। मृतकों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से 31 में से 11 दोषियों को फांसी की सजा देने की मांग की है। बता दें कि गुजरात सरकार ने 2017 में इनकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था।
राज्य सरकार की ओर से अदालत में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा है कि, इस मामले में मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने का हम विरोध करते हैं। इससे गंभीर अपराध और क्या हो सकता है कि 59 लोगों को जिंदा जलाकर मार डाला जाए। बता दें कि 27 फरवरी 2002 को मुस्लिमों की भीड़ ने साजिश के तहत साबरमती एक्सप्रेस के एक कोच में पेट्रोल डालकर आग लगा दी थी। इसमें 59 श्रद्धालुओं की जलकर मौत हो गई थी। ट्रेन से कोई बाहर न निकल सके, इसलिए मुस्लिम भीड़ ने बाहर से उस कोच के दरवाजे बंद कर दिए थे और बाहर से लगातार पत्थरबाज़ी कर रहे थे। इस जघण्टा हत्याकांड के बाद गुजरात में दंगे भड़के और सांप्रदायिक हिंसा हुई।
प्रधान न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली बेंच ने सात दोषियों की जानकारी मांगी थी। उनमें वे दोषी भी शामिल थे, जिनकी सजा को बदल दिया गया था। वे लंबे समय से जेल में रहने का हवाला देकर या फिर खराब स्वास्थ्य की बात कहकर जमानत लेना चाहते थे। न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला भी इस बेंच का हिस्सा थे। उन्होंने जानना चाहा कि जो दोषी कम से कम 20 वर्षों से जेल में हैं, क्या राज्य की नीति के अनुसार, उनकी सजा कम की जा सकती है और उन्हें रिहा किया जा सकता है। इसपर तुषार मेहता ने कहा कि इस प्रकार के मामले में टेररिस्ट ऐंड डिसरप्टिव ऐक्टिविटीज ऐक्ट (TADA) लागू होता है। राज्य सरकार की नीति है कि TADA के दोषियों की सजा कम नहीं की जा सकती।
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