गोपाल दास नीरज: हम तो मस्त फकीर, हमारा कोई नहीं ठिकाना रे...

गोपाल दास नीरज: हम तो मस्त फकीर, हमारा कोई नहीं ठिकाना रे...
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दिल्ली: भारत के महाकवि गोपाल दास नीरज का कल रात एम्स में निधन हो गया. जिससे की भारत में साहित्य की दुनिया को एक बहुत बड़ी झति पहुंची है. इस महाकवि पर समर्पित उनके स्मरण स्वरुप उनकी ही कुछ कविताएं.

हम तो मस्त फकीर...
हम तो मस्त फकीर, हमारा कोई नहीं ठिकाना रे
जैसा अपना आना प्यारे, वैसा अपना जाना रे

चलते-चलते थक गए पैर...
चलते-चलते थक गए पैर फिर भी चलता जाता हूँ!
पीते-पीते मुँद गए नयन फिर भी पीता जाता हूँ!
झुलसाया जग ने यह जीवन इतना कि राख भी जलती है,
रह गई साँस है एक सिर्फ वह भी तो आज मचलती है,

 

 

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से...
स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।

 

मैं तुम्हें अपना..
अजनबी यह देश, अनजानी यहां की हर डगर है,
बात मेरी क्या- यहां हर एक खुद से बेखबर है
किस तरह मुझको बना ले सेज का सिंदूर कोई
जबकि मुझको ही नहीं पहचानती मेरी नजर है,
आंख में इसे बसाकर मोहिनी मूरत तुम्हारी
मैं सदा को ही स्वयं को भूल जाना चाहता हूं
मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं॥

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