आज एक 18 वर्षीय कायला लोवडाहल नाम की एक लड़की की कहानी आपको बताने जा रहे है. जो पैदा तो लड़की के तौर पर हुई थीं, मगर फिर जेंडर चेंज करवाकर लड़का बन गईं. कुछ वर्ष पश्चात् उन्हें इसका पछतावा हुआ तथा वो फिर से लड़की बन गईं. अब वो अपने चिकित्सकों एवं हॉस्पिटल को घसीटकर अदालत में ले गई हैं. जिन पर जेंडर चेंज करने की जल्दबाजी का आरोप है. कायला के साथ जो कुछ हुआ वो बहुत डराने वाला है. उन्होंने अमेरिका के कैलिफोर्निया स्टेट कोर्ट में जो मुकदमा दायर किया है, उसमें बताया है कि उन्हें 11 वर्ष की आयु में एहसास हुआ था कि वो लड़का बनना चाहती हैं. तब उन्हें ऑनलाइन ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के बारे में पता चला था.
उन्होंने आरोप लगाया कि उनके 12 वर्ष का होने पर शरीर में परिवर्तन के लिए उपचार शुरू हुआ. डॉक्टर पर्याप्त मनोवैज्ञानिक जांच करने में नाकाम रहे तथा उनके माता पिता से कहा, 'एक मरी हुई बेटी के साथ रहने से अच्छा जिंदा बेटे के साथ रहना है.' 13 वर्ष का होने पर कायला के स्तन शरीर से अलग कर दिए गए. अब वो पुरुषों की भांति नजर आना शुरू हो गईं. फिर 17 वर्ष का होने पर उन्हें एहसास हुआ कि उनके साथ सब गलत हो गया है. कायला ने यूट्यूब पर दिए एक इंटरव्यू में बताया, 'सबसे बदतर उस चीज के हाथों बिकना था, जिस पर मुझे भरोसा था कि वो मेरी मदद करेगी तथा बेहतर महसूस कराएगी, लेकिन उसे करने के बाद और दूसरी तरफ आने के बाद बेहतर महसूस नहीं हुआ. मैं इंतजार कर सकती थी, मगर अब वापस पहले वाली स्थिति में नहीं आ सकती.' कायला ने एक हॉस्पिटल और चार चिकित्सकों के खिलाफ मुकदमा दायर किया है. उन्होंने 'गहरे शारीरिक और भावनात्मक घाव और गंभीर अफसोस' पैदा करने के नुकसान की भरपाई करने की मांग की है.
सेंटर फॉर अमेरिकन लिबर्टी से कायला के वकील मार्क ई. ट्रैमेल ने बताया कि हॉस्पिटल और डॉक्टरों ने मानकों का उल्लंघन किया है तथा जेंडर चेंज के लिए जल्दबाजी की. हॉस्पिटल की ओर से एक बयान में कहा गया है, 'जब युवा मरीज, माता पिता की सहमति से, लिंग पुष्टि से जुड़े उपचार की तलाश करते हैं, तब टीम सावधानीपूर्वक उनके उपचार के विकल्पों का मूल्यांकन करती है तथा फिर चिकित्सकों और अन्य अनुभवी प्रोफेशनल्स की बड़ी टीम मरीज और उनके परिवार को जानकारी, परामर्श एवं अन्य सहायता प्रदान करने के लिए उपलब्ध रहती है.' बयान में कहा गया है कि उपचार मरीज एवं उसके परिवार की सहमति से ही होता है. वही कायला ने ऐसे लोगों की भी कहानियां पढ़ीं, जिन्हें जेंडर बदलने के पश्चात् पछतावा हुआ है. उन्हें एक वर्ष पहले दोबारा जेंडर चेंज करवाने का पता चला था. वो नाबालिगों के ऐसे ऑपरेशन के खिलाफ सरकार को सचेत कर रही हैं. उन्होंने कहा कि बच्चों पर ट्रांस का लेबल लगाने एवं मेडिकल हेल्प के माध्यम से जेंडर में बदलाव करने की जल्दबादी के गंभीर नतीजे हो सकते हैं. यदि कोई इसकी वकालत करता भी है, तो उसे रुककर ये सोचना चाहिए कि 13 वर्षीय बच्चा मुश्किल से टीनेजर है. उनके शरीर के स्वस्थ अंगों को हटाने की इजाजत दी जा रही है, ये बोलकर कि वो गलत शरीर में पैदा हुए हैं.
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