नई दिल्ली: पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में स्थित शारदा पीठ के लिए कॉरिडोर बनाने की कोशिशें लंबे समय से जारी हैं। पाकिस्तान में इस कॉरिडोर को हरी झंडी भी दी जा चुकी है। हालांकि इस पर काम आरंभ होने से पहले पाकिस्तान ही कई सवालों को लेकर चिंतित है। दरअसल, कश्मीरी काफी समय से शारदा पीठ कॉरिडोर की मांग उठाते रहे हैं। हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तातवाल में शारदा देवी मंदिर का वर्चुअल तरीके से उद्घाटन किया। इस दौरान अमित शाह ने शारदा पीठ तक के कॉरिडोर को खोलने की भी बात कही थी।
बता दें कि, शारदा पीठ तक के लिए कॉरिडोर बनाने की चर्चा काफी समय से चल रही है। पाकिस्तान भी ऐसा करना चाहता है, क्योंकि इससे उसका धार्मिक पर्यटन बढ़ेगा और पैसा आएगा। इसके साथ ही कई लोगों का कहना है कि इस मंदिर के लिए कॉरिडोर बनाने से यहां की स्थानीय संस्कृति का संरक्षण किया जा सकेगा। हालांकि पाकिस्तान के मन में कई किस्म के डर भी पैदा हो रहे हैं। पंजाब में करतारपुर कॉरिडोर की बात और थी, मगर जम्मू-कश्मीर को लेकर पाकिस्तान भी खौफ में रहता है। उसे भी पता है कि जिस इलाके में शारदा पीठ स्थित है, वह भारत का ही हिस्सा है, जिसपर उसने खुद अवैध कब्जा कर रखा है। इसीलिए वह सुरक्षा कारणों का हवाला देकर इस कॉरिडोर को लेकर टालमटोली करता रहता है।
वहीं, पाकिस्तान में कई लोग यह भी कहते है कि इस कॉरिडोर को शुरू करना भारत की भाजपा सरकार का एक अजेंडा है जो कि जम्मू-कश्मीर से आगे बढ़ते हुए PoK तक अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है। बता दें कि भाजपा के कई नेता कह ये चुके हैं कि सरकार के अजेंडे में PoK को वापस लाना है। पाकिस्तान में प्रस्तावित शारदा पीठ कॉरिडोर को लेकर चर्चा चल रही है। पाकिस्तान के कई विशेषज्ञ इस बात को लेकर आशंका जता रहे हैं कि जिस प्रकार से जम्मू-कश्मीर में भारत ने अचानक अनुच्छेद 370 को हटा लिया, तो कहीं PoK को भी किसी दिन भारत का हिस्सा ना घोषित कर दे। हालांकि, वे पूरी तरह इस बात से इनकार भी नहीं करते कि यह कॉरिडोर भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों को सुधारने का एक माध्यम भी हो सकता है।
क्या है शारदा पीठ का इतिहास :-
बता दें कि, हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार, माता सती के आत्मदाह करने के बाद जब भगवान शिव उनका अधजला शरीर लेकर तांडव कर रहे थे, उस समय माता सती का दाहिना हाथ यहीं हिमालय पर्वत पर आकर गिरा था। कश्मीरी पंडितों में इस मंदिर को लेकर अगाध आस्था है। यह मंदिर नीलम नदी के किनारे स्थित है और देवी के 18 शक्तिपीठों में से एक है। PoK में शारदा नाम के गांव में यह अब जर्जर अवस्था में बचा है। माँ का यह मंदिर नियंत्रण रेखा (LoC) से 10 मील की दूरी पर स्थित है। 1947 में भारत के बंटवारे से पहले यहाँ पूजा-अर्चना होती थी, लेकिन उसके बाद आतंकियों ने हमले में मंदिर जीर्ण-शीर्ण होता गया और अब इस प्रचीन धरोहर के जीर्णोद्धार का जिम्मा भारत सरकार ने फिर उठाया है ।
बता दें कि यह मंदिर 5 हजार वर्ष पुराना है। बाद में 237 ईसा पूर्व सम्राट अशोक ने इसका पुनर्निर्माण कराया था। यह मंदिर एक प्रमुख शिक्षा का केंद्र हुआ करता था। बताया जा रहा है कि शाक्त संप्रदाय को समर्पित यह प्रथम तीर्थ स्थल है। यहीं सबसे पहले मां शारदा की उपासना आरंभ हुई। इसके बाद वैष्णो देवी और खीर भवानी मंदिर की स्थापना की गई है। कश्मीरी पंडित मानते हैं कि इस मंदिर में तीनों देवियां निवास करती हैं।
बताया जा रहा है कि यह पीठ कभी भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे उच्च विश्वविद्यालय हुआ करता था। शैव संप्रदाय के प्रवर्तक शंकराचार्य और वैष्णव संप्रदाय के जनक रामानुजाचार्य भी यहां पहुंचे थे। इसके बाद में प्राकृतिक आपदाओं के चलते मंदिर को भारी नुकसान हुआ। भारत-पाकिस्तान के विभाजन के बाद मंदिर जीर्ण होता चला गया। 19वीं सदी में महाराजा गुलाब सिंह ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था।
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