सरकारी समोसा बना हेड कांस्टेबल के गले की हड्डी, ऑनलाइन पेमेंट करने पर हुआ यह खुलासा

सरकारी समोसा बना हेड कांस्टेबल के गले की हड्डी, ऑनलाइन पेमेंट करने पर हुआ यह खुलासा
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इंदौर/ब्यूरो। पोलोग्राउंड स्थित एसएएफ फर्स्ट बटालियन की कैंटीन का प्रभारी हेड कांस्टेबल सरकारी समोसे का भुगतान अपने निजी अकाउंट में करा रहा था। इतना ही नहीं, 8 रुपए का समोसा बाजार में 10 रुपए में आम लोगों को धड़ल्ले से बेचा जा रहा था। एक डीएसपी ने जब समोसे का ऑनलाइन भुगतान किया तो गड़बड़ी सामने आई। 

जांच में कई और भी खामियां निकली, जिसके बाद हेड कांस्टेबल को हटा दिया गया है। हाल ही में डीएसपी अजय पंडित कैंटीन आए थे। उन्होंने समोसा खरीदा, लेकिन उनके पास खुल्ले पैसे नहीं थे। कैंटीन प्रभारी चंद्रिका प्रसाद ने उनसे पेटीएम करने को कहा। डीएसपी ने ऑनलाइन पेमेंट किया तो पैसे इंचार्ज के खाते में ट्रांसफर हुए। डीएसपी ने इस पर आपत्ति ली और बटालियन कमांडेंट से इसकी शिकायत की। क्वार्टर मास्टर रामनिवास यादव ने पूरे मामले की जांच की तो चंद्रिका प्रसाद दोषी निकला। उसके पास दो साल से कैंटीन चलाने का जिम्मा था।

पेमेंट को लेकर अनियमितताएं मिली थीं, इसलिए हेड कांस्टेबल को कैंटीन संचालन के प्रभार से हटाया गया है। हालांकि कोई बड़ी राशि का घपला सामने नहीं आया है। चंद्रिका प्रसाद पर ये भी आरोप लगे हैं कि वह कैंटीन में 8 रुपए के समोसे को 10 रुपए या उससे ज्यादा कीमत में बेचता था। कैंटीन के शासकीय स्केल के मुताबिक यहां रोजाना 800 से 1 हजार समोसे तैयार होते हैं और इन्हें बेचने की कीमत सिर्फ 8 रुपए ही है, जो पूरे शहर में कही नहीं है। यानी शहर में सबसे सस्ता समोसा यहीं मिलता है।

इसके चलते पुलिसकर्मियों के अलावा बाहरी लोगों की भी यहां काफी भीड़ होती है। बता दें कि सशस्त्र बलों में पुलिसकर्मियों, उनके परिवार और आम जनता के लिए बहुत सी सुविधाएं वेलफेयर के जरिये जुटाई जाती हैं। इसी के तहत यह कैंटीन भी संचालित होता है। इससे होने वाली कमाई बटालियन के वेलफेयर फंड में जाती है। कैंटीन का संचालन भी एक विशेष कमेटी की निगरानी में होता है। हर चीज के रेट फिक्स और बाजार भाव से कम भी होते हैं, लेकिन इस कैंटीन में बीते कुछ समय से गड़बड़ियां सामने आ रही थीं।

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