कर्नाटक में हुए सियासी ड्रामे में राज्यपाल की भूमिका बेहद अहम रही जिसके बाद ये बहस चल पड़ी की आख़िरकार राज्यपाल के पास आखिर कौन कौन सी संवैधानिक शक्तियां है. तो हम आपको बताते है राज्यपाल की ताकत के बारे में -
राज्य से जुडी संवैधानिक शक्तियाँ और कार्य-
-अनुच्छेद 166 से पता चलता है कि राज्य में कार्यपालिका से सम्बंधित सभी कार्य उस राज्य के राज्यपाल के नाम से ही किये जाते हैं
-अनुच्छेद 164 के अनुसार राज्यपाल न केवल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है बल्कि उसकी सलाह पर राज्य की मंत्रिपरिषद के अन्य मंत्रियों की भी नियुक्ति करता है
-यदि किसी एक दल को बहुमत न मिला हो तो ऐसे गठबंधन दलों के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त करता है जिसके द्वारा विधान सभा में बहुमत प्राप्त करने की सम्भावना होती है
-राष्ट्रपति द्वारा किसी राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय उस राज्य के राज्यपाल से परामर्श किया जाता है
-राज्य के विधानमंडल के द्वारा पारित किसी भी बिल को क़ानून बनने के लिए राज्यपाल की सहमति जरूरी होती है
-राज्य के विधानमंडल में वार्षिक और पूरक बजट राज्यपाल के नाम से ही प्रस्तुत किये जाते हैं
-राज्य की आकस्मिकता निधि पर राज्य के राज्यपाल का नियंत्रण होता है
-अनुच्छेद 161 में उपबंध है जिन विषयों पर राज्य की कार्यपालिका शक्ति का नियंत्रण होता है .विधि के विरुद्ध अपराध करने वाले किसी व्यक्ति को प्राप्त दंड को राज्यपाल क्षमा, कम या कुछ समय के लिए स्थगित कर सकता है.
केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में शक्तियाँ और कार्य -
-यदि राज्यपाल की यह राय है की उस राज्य का शासन संविधान के उपबंधों के अनुसार नहीं चलाया जा रहा है या राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो गया है तो उस स्थिति में राज्यपाल, राष्ट्रपति को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश कर सकता है. --राज्यपाल इस शक्ति का प्रयोग स्वविवेक से करता है इसलिए यह उसकी विवेकाधीन शक्ति कहलाती है.
-इस प्रकार के राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य में राज्यपाल, राष्ट्रपति की ओर से शासन का संचालन कार्य वाहक होता है.
-कार्यकाल के दौरान राज्यपाल पर किसी भी तरह की संवैधानिक कार्यवाई नहीं की जा सकती
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