अहमदाबाद: गुजरात में शराब के निर्माण, बिक्री और खपत पर लगी रोक को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर उच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। मामले की सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता ने कहा है कि इस प्रकार का कानून अतार्किक, मनमाना, अकारण और भेदभावपूर्ण वाला है। इतना ही नहीं याची का कहना था कि यह एक प्रकार से निजता के उल्लंघन जैसा है और राज्य सरकार नहीं बता सकती कि हमें क्या खाना चाहिए और क्या पानी चाहिए।
याची ने अदालत में कहा कि प्रदेश में रोक के बाद भी एक अंडरग्राउंड नेटवर्क है, जो राज्य में शराब की सप्लाई सुनिश्चित करा रहा है। राजीव पटेल और दो अन्य लोगों की तरफ से दाखिल की गई याचिका में कहा गया था कि जीवन के अधिकार, निजी स्वतंत्रता एवं निजता की बात करें, तो इसका जिक्र संविधान के आर्टिकल 21 में आता है। इसके तहत हर नागरिक के पास इस बात का अधिकार का है कि वह कैसे अपना जीवन जीना चाहता है। इस संबंध में सरकार नहीं बता सकती कि उसे क्या खाना चाहिए और क्या पीना चाहिए।
इसके जवाब में सरकार की तरफ से पेश वकील कमल त्रिवेदी ने कहा कि किसी कोर्ट के पास यह अधिकार नही है कि वह किसी ऐसे कानून की वैधता की समीक्षा करे, जिसे सुप्रीम कोर्ट की तरफ से भी बरकरार रखा गया है। बता दें कि गुजरात में शराबबंदी का कानून 1949 से लागू हुआ था और इसे 1951 में शीर्ष अदालत में भी चुनौती दी गई थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इसे बरक़रार रखने का फैसला लिया था। त्रिवेदी ने कहा कि इस मामले में निजता का तर्क देना उचित नहीं है।
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