2 फरवरी से शुरू होने वाली गुप्त नवरात्रि का आज तीसरा दिन है। आप सभी को बता दें कि इस दिन मां त्रिपुर सुंदरी/ललिता देवी की पूजा-उपासना की जाती है। अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं माँ त्रिपुर सुंदरी की कथा।
माँ त्रिपुर सुंदरी की कथा- कहा जाता है माँ त्रिपुर सुंदरी देवी की कहानी भगवान शिव और उनकी पत्नी माता सती से जुड़ी हुई है। जी दरअसल राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री सती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी, लेकिन दक्ष को मंजूर नहीं था, फिर भी सती ने भगवान शिव से ही विवाह कर लिया। ऐसे में एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया, उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन जान-बूझकर अपने दामाद भगवान शंकर को नहीं बुलाया, माता सती ने इसे भगवान शिव का अपमान माना औहर बहुत दुखी हुई।
यज्ञ-स्थल पर पहुंची माता सती ने अपने पिता दक्ष से शिव को आमंत्रित न करने का कारण पूछा, इस पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर को अपशब्द कहे, इस अपमान से दुखी होकर सती ने यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी, भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला, तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। क्रोधित और आहत भगवान शिव ने यज्ञ कुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कर कंधे पर उठा लिया और गुस्से में तांडव करते हुए वहां से चल दिए- भगवान शिव के क्रोध से ब्रह्मांड को बचाने के लिए भगवान श्री विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती की पार्थिव शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया। पृथ्वी पर जहां भी माता सती के अंग गिरे, वहां माता की सिद्ध शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। माँ त्रिपुर सुंदरी का यह शक्तिपीठ भी उन्हीं 51 में से एक माना जाता हैं, इस स्थान माता सती के पार्थिव शरीर की योनि का भाग गिरी था, यही कारण है कि प्राचीनतम तस्वीरों में माँ को यौनावस्था में दर्शाया गया है। इस स्थान पर सती की योनि गिरने के पश्चात ही इस स्थान को अन्य शक्तिपीठों में गिना गया।
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