गुप्त नवरात्रि के सातवें दिन माँ धूमावती का दिन होता है. दरिद्रता को दूर करने वाली माँ धूमावती को चंचला, विरल-दंता, मुक्त केशी, शूर्प-हस्ता, रक्षा नेत्रा के नामों से भी जाना जाता हैं. माँ धूमावती क्रोध और संतापों को मिटाती हैं. उन्हें आज तक कोई नहीं हरा पाया इसलिए उन्हें अकेली महाविद्या माना गया है.
माँ धूमावती का कहना हैं कि अगर उन्हें कोई हरा देगा तो वे उसी का वरण कर लेगी लेकिन आज तक उन्हें कोई नहीं हरा पाया इसलिए वह आज भी अजय है. माँ धूमावती श्री लक्ष्मी जी की छोटी बहन हैं. ऐसा कहा जाता है कि अगर आप गुप्त नवरात्रि में माँ धूमावती की सच्चे मन से आराधना करते हैं तो आपको किसी प्रकार की दरिद्रता का सामना नहीं करना पड़ता हैं और आपका घर हमेशा खुशहाल रहता हैं.
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इसके अलावा अगर आपके घर में लगातार लड़ाई झग़डे हो रहे हैं और आप बहुत परेशान हैं, तो गुप्तनवरात्रि के दौरान आप माँ धूमावती की पूरे विधि विधान के साथ पूजा करें. अगर आप ऐसा करते हैं तो आपको कभी भी किसी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा. बता दें कि माँ धूमावती के नाम के पीछे गहरा रहस्य हैं.
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ऐसा कहा जाता है कि सती प्रसंग के अनुसार भगवान शंकर को उनके ससुर यानी राजा दक्ष ने यज्ञ में बुलाया था. इस दौरान सती ने भगवान शिव से जिद की वह अपने पिता के आमंत्रित करने पर अवश्य जाएगी. शंकर जी के मना करने पर भी सती अपनी जिद पर अड़ी रही और यज्ञ में चली गई लेकिन वह सती को अपमान से तिरस्कृत होना पड़ा और इसके बाद उन्होंने यज्ञ कुण्ड में जान दे दी. इसके बाद यज्ञ की अग्नि बुझ गई और उसमे से एक शक्ति सामने आई जिसका नामा धूमावती था. धुंए के रूप में बाहर आने पर उन्हें धूमावती के नाम से पहचाना जाता हैं.
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