धर्म रक्षक और मानवता के सच्चे प्रेमी गुरु अर्जुन देव जी थे। वह सिखों के पांचवें गुरु थे और उनका नाम इतिहास के पन्नों पर दर्ज है। आप सभी को बता दें कि उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सेवा में ही व्यतीत किया। कहा जाता है साल 1606 में लाहौर में मुगल बादशाह जहांगीर ने उन्हें बंदी बना लिया था और उस दौरान उन्हें मृत्युदंड की सजा सुनाई गई थी। जी दरअसल गुरु अर्जुन देव जी धर्म रक्षक और मानवता के सच्चे सेवक थे और उनके मन में सभी धर्मों के लिए सम्मान था। जब मुगलकाल था तब अकबर, गुरु अर्जुन देव के मुरीद थे।
कहा जाता है उस दौर में जब अकबर का निधन हो गया तो जहांगीर के शासनकाल में गुरु अर्जुन देव को उतना महत्व नहीं मिला। उस समय शहजादा खुसरो को जब मुगल शासक जहांगीर ने देश निकाला का आदेश दिया था, तो गुरु अर्जुन देव ने उन्हें शरण दी। इसी के चलते जहांगीर ने उन्हें मौत की सजा सुनाई थी। आपको बता दें कि गुरु अर्जुन देव का निधन 30 मई, 1606 को हुआ था और जीवन के अंतिम समय में उन्होंने यह अरदास की। ''तेरा कीआ मीठा लागे। हरि नामु पदारथ नानक मांगे॥''
गुरु अर्जुन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 को गोइंदवाल साहिब में हुआ था। उनके पिता गुरु राम दास थे, जो सिखों के चौथे गुरु थे और उनकी माता का नाम बीवी भानी था। कहा जाता है गुरु अर्जुन देव बचपन से ही धर्म-कर्म में रुचि लेते थे और इसी के साथ उन्हें अध्यात्म से भी काफी लगाव था। वह समाज सेवा को अपना सबसे बड़ा धर्म और कर्म मानते थे। केवल 16 साल की उम्र में ही उनका विवाह माता गंगा से हो गया था और साल 1582 में उन्हें सिखों के चौथे गुरु रामदास ने अर्जुन देव जी को अपने स्थान पर पांचवें गुरु के रूप में नियुक्त किया था।
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