श्रवण माह शुरू होने को है. ये आषाढ़ की पूर्णिमा से शुरू होते हैं जिन्हें गुरु पूर्णिमा भी कहते हैं. आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु के प्रति आदर-सम्मान और अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के पर्व के रूप में मनाते हैं. इस बार यह गुरु पूर्णिमा 16 जुलाई यानी मंगलवार को है. आज हम बताने जा रहे हैं इसी के कुछ महत्त्व. गुरु को हमेशा से ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान पूज्य माना गया है. जानते हैं कौन रहे सबसे पहले गुरु.
महर्षि वेदव्यास को समर्पित है यह पर्व
वेद, उपनिषद और पुराणों का प्रणयन करने वाले वेद व्यास जी को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है. महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग 3000 ई. पूर्व में हुआ था. उनके सम्मान में ही हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है.
गुरु पूर्णिमा का महत्व
गुरु पूर्णिमा के दिन बहुत से लोग अपने दिवंगत गुरु अथवा ब्रह्मलीन संतों के चिता या उनकी पादुका का धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, चंदन, नैवेद्य आदि से विधिवत पूजन करते हैं. गुरु को ब्रह्म कहा गया है, क्योंकि जिस प्रकार से वह जीव का सर्जन करते हैं, ठीक उसी प्रकार से गुरु शिष्य का सर्जन करते हैं. हमारी आत्मा ईश्वर रूपी सत्य का साक्षात्कार करने के लिए बेचैन है और ये साक्षात्कार वर्तमान शरीरधारी पूर्ण गुरु के मिले बिना संभव नहीं है, इसीलिए हर जन्म में वो गुरु की तलाश करती है.
शिव हैं सबसे पहले गुरु
पुराणों के अनुसार, भगवान शिव सबसे पहले गुरु माने जाते हैं. शनि और परशुराम इनके दो शिष्य हैं. शिवजी ने ही सबसे पहले धरती पर सभ्यता और धर्म का प्रचार-प्रसार किया था इसलिए उन्हें आदिदेव और आदिगुरु कहा जाता है. शिव को आदिनाथ भी कहा जाता है. आदिगुरु शिव ने शनि और परशुराम के साथ 7 लोगों को दिया. ये ही आगे चलकर सात मह्मर्षि कहलाए और इन्होंने आगे चलकर शिव के ज्ञान को चारों तरफ फैलाया.