नई दिल्ली: गुरु पूर्णिमा हिन्दू धर्म में एक प्रमुख त्योहार है जो गुरु की महिमा और मार्गदर्शन को मान्यता देता है। यह त्योहार पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है, जो मासिक पूर्णिमा के दिन आती है। इस दिन गुरु की पूजा, आदर और स्मरण किया जाता है और उन्हें धन्यवाद दिया जाता है जो हमें ज्ञान और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
गुरु पूर्णिमा का महत्व पुराणों में वर्णित है। वेद पुराणों के अनुसार, गुरु पूर्णिमा पर भगवान शिव ने अपने प्रथम गुरु ध्यानु मुनि को ज्ञान दिया था। इस दिन को ध्यानु मुनि ने अपने गुरु के गुरु, भगवान शिव को पूजा और समर्पित किया था। इस प्रकार गुरु शिष्य परंपरा की शुरुआत हुई और गुरु पूर्णिमा को गुरु के समर्पण और सम्मान के रूप में मनाने की परंपरा बन गई।
गुरु पूर्णिमा के दिन शिष्य अपने गुरु के चरणों में ध्यान रखते हैं और उन्हें धन्यवाद देते हैं। यह एक समारोहपूर्ण दिन होता है जब लोग गुरु के आदर्शों का पालन करने और उनके शिक्षाओं को अपनाने का संकल्प लेते हैं। इस दिन प्रवचन, सत्संग, गुरु की कथाएं सुनी जाती हैं और ध्यान का अभ्यास किया जाता है। यह एक पवित्र और महत्वपूर्ण अवसर है जब शिष्य गुरु के प्रति अपनी आदर और श्रद्धा का अभिव्यक्ति करते हैं।
गुरु पूर्णिमा के दिन भक्तों द्वारा गुरु के चरणों में फूल, धूप, दीप, फल आदि का आराधनात्मक सामग्री समर्पित की जाती है। यह दिन शिक्षा और ज्ञान के महत्व को प्रकट करता है और लोगों को अपने गुरु के द्वारा प्राप्त किया गया ज्ञान का सम्मान करने का अवसर देता है। इस दिन शिष्य अपने गुरु की कृपा और आशीर्वाद का प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
गुरु पूर्णिमा का महत्व धार्मिक और सामाजिक दोनों ही है। इसे मनाने से लोग अपनी आत्मिक और आध्यात्मिक विकास को प्रोत्साहित करते हैं और समाज में गुरु-शिष्य परंपरा की महत्वपूर्णता को दर्शाते हैं। इस दिन शिष्य गुरु से अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करने की कामना करते हैं और गुरु को सम्मान देते हैं।
गुरु पूर्णिमा को विशेष आयोजनों, साधु-संतों के सत्संगों और गुरु के बारे में चर्चाओं के द्वारा मनाया जाता है। इस दिन धर्मिक स्थलों में सभाएं आयोजित की जाती हैं, जहां शिष्य गुरु से सम्बंधित कथाओं और विचारों को सुनते हैं और उनकी शिक्षा से प्रेरित होते हैं। इसके अलावा, कई स्थानों पर गुरु पूजा और आरती का आयोजन भी किया जाता है।
यह त्योहार शिक्षा, संस्कृति और आध्यात्मिकता की महत्वपूर्ण अवधारणाओं को मजबूती से प्रस्तुत करता है और गुरु-शिष्य संबंध की महत्वता को पुनर्जीवित करता है। इस दिन शिष्य अपने जीवन में गुरु की मार्गदर्शन को पालन करने का संकल्प लेते हैं और सत्य, न्याय, साधना और सेवा के माध्यम से अपने आत्मा का विकास करते हैं।
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