नई दिल्ली: इतिहास में 'हिंद की चादर' के नाम से मशहूर गुरु तेग बहादुर का बलिदान आज 24 नवंबर को शहीदी दिवस के तौर पर मनाया जाता है। गुरु तेग बहादुर सिखों के नौवें गुरु थे और उन्होंने ऐसे लोगों के लिए अपने जीवन न्योछावर कर दिया था, जो लोग उनके समुदाय के भी नहीं थे। साल 1675 में दिल्ली के चांदनी चौक पर मुगल बादशाह औरंगजेब ने सिखों के नौवें धर्मगुरु तेग बहादुर जी को मौत के घाट उतार दिया था। गुरु तेग बहादुर पर कई अध्ययन करने वाले कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के नोएल किंग इस घटना का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि 'गुरु तेग बहादुर की हत्या विश्व में मानव अधिकारों की रक्षा करने के लिए पहली शहादत थी'
बता दें कि भारतीय इतिहास में औरंगजेब को एक कट्टरपंथी इस्लामी मुगल बादशाह के रूप में कुख्यात है। औरंगजेब की कट्टरता के कई किस्सों से इतिहास भरा पड़ा हैं। औरंगजेब भारत को भी एक इस्लामिक राष्ट्र बनाना चाहता था और इसके लिए उसने हिंदुओं को कई तरीकों से मजबूर और प्रताड़ित भी किया। ऐसे में परेशान होकर पंडित कृपा राम की अगुवाई में 500 कश्मीरी पंडितों को एक दल आनंदपुर साहिब में गुरु तेग बहादुर से सहायता मांगने के लिए गया। गुरु जी उनकी मदद के लिए फ़ौरन राजी हो गए। गुरु जी ने उन्हें कहा कि औरंगज़ेब तक सन्देश पहुंचा दो कि अगर गुरु तेग बहादुर इस्लाम कबूल कर लेंगे तो वे सभी लोग इस्लाम कबूल कर लेंगे, ऐसा ही किया गया।
इसके बाद गुरु तेग बहादुर ने औरंगजेब को चुनौती दी कि वे मर जाएंगे, मगर इस्लाम कबूल नहीं करेंगे। इससे आग बबूला हुए क्रूर शासक औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर को समर्थकों के साथ गिरफ्तार कर लिया और पांच दिनों तक कड़ी शारीरिक यातनाएं दी गई। लेकिन गुरु तेग बहादुर ने फिर भी इस्लाम कबूल करने से मना कर दिया। औरंगजेब ने बर्बरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गुरु तेग बहादुर के सामने ही उनके समर्थकों को जिंदा जला दिया गया। लेकिन वो गुरु तेग बहादुर को झुका नहीं पाया। 11 नवंबर, 1675 ई को दिल्ली के चांदनी चौक में काज़ी ने फ़तवा पढ़ा और जल्लाद जलालदीन ने तलवार करके गुरू साहिब का शीश धड़ से अलग कर दिया। किन्तु गुरु तेग़ बहादुर ने अपने मुंह से आह तक नहीं की। ऐसे त्यागी और धर्मरक्षक गुरु के बलिदान दिवस पर उन्हें कोटि कोटि नमन।
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