ग्यानी जेल सिंह सातवें राष्ट्रपति के तौर पर भारत की स्वतंत्रता के बाद काम करने वाले पहले सिख थे. आज से कई साल पहले 5 मई 1916 को ग्यानी जेल सिंह का जन्म हुआ था. इसलिए 5 मई उनके जन्मदिन के मौके पर हम उनके जीवन के प्रशंसनिय लम्हो को याद कर रहे है. वह एक बहुत ही धार्मिक व्यक्ति थे. गुरु ग्रंथ साहिब के बारे में गहन ज्ञान के बावजूद उनमें औपचारिक धर्मनिरपेक्ष शिक्षा की कमी थी. वह एक स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक सुधारक थे, जो हमेशा दलित लोगों के साथ देते थे और उन्होंने समाज के उत्थान के लिए संभवतः सब कुछ किया. वह कम उम्र से राजनीति में दिलचस्पी रखते थे और भगत सिंह और उनके साथियों की शहादत से बहुत प्रभावित थे उनकी अनमोल ज़िंदगी का दान जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए दिया था.युवा जेल सिंह ने सिर्फ 16 वर्ष की उम्र मे अपने राष्ट्र के कल्याण के लिए योगदान करने का संकल्प किया था. उन्होंने राष्ट्रव्यापी गतिविधियों में भाग लिया. उन्हें अक्सर कैद कर दिया जाता था, यहां तक कि एकान्त कारावास में भी रखा जाता था.फिर कोई भी उन्हे उनके उद्देशो से अलग नही कर सका.
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एक गरीब परिवार में वे पंजाब के फरीदकोट जिले में पैदा हुए थे. उनके पिता का नाम भाई किशन सिंह था, उनकी माता माता इंद्र कौर थी. उनके पिता गांव के बढई के रूप में काम करते थे.वह पांच भाई और एक बहन थे. जिनमें वह सबसे छोटे थे. जब उनकी माता का निधन हुआ वह बहुत छोटे थे. बाद में बच्चों को उनकी मां की बहन के पास भेजा गया. जेल सिंह को उनके परिवार द्वारा एक धार्मिक वातावरण में लाया गया और कम उम्र से सिखों के पवित्र ग्रंथों से वह अच्छी तरह से वाकिफ हो गये. किशोरावस्था में उन्हें अमृतसर के शाहिद सिख मिशनरी कॉलेज में दाखिला मिल गया था. जबकि उनके पास मैट्रिक का प्रमाण पत्र नहीं था. बोलने की कला में वह सार्वजनिक रूप से अत्यधिक कुशल व्यक्ति थे.
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अपनी किशोरावस्था से वह सक्रिय रूप से राजनीति में शामिल थे. और शिरोमणि अकाली दल में शामिल हुए, जब वह सिर्फ 15 वर्ष के थे.1930 के दशक के अंत में वे अपने 20 वर्षों तक पहुंचे, तब तक उनकी राजनीतिक आकांक्षाओं को एक नए उत्साह के रूप में लेना प्रारम्भ हो गया था. 1938 में उन्होंने प्रजा मंडल की स्थापना की, जो कि एक राजनीतिक संगठन था जो कि फरीदकोट में कांग्रेस पार्टी के साथ संबद्ध था. यह फरीदकोट के महाराजा के लिए अच्छा नहीं था, उन्होंने शहर में कांग्रेस की एक शाखा खोलने को उनकी शक्ति के लिए खतरे के रूप में देखा. गृह मंत्री के रूप 1980 में वह इंदिरा गांधी के में कैबिनेट में शामिल हुए और 1982 में राष्ट्रपति बने. हालांकि उनके विरोधियों का मानना था कि उन्हें अपनी क्षमताओं के बजाय इंदिरा गाँधी का वफादार होने के लिए राष्ट्रपति के रूप में चुना गया था. ऑपरेशन ब्लू स्टार होने पर जून 1984 में उन्हें मूक दर्शक बनने रहने का भी आरोप लगाया गया. इस उतार चढ़ाव वाले जीवन को सफलता पूर्व जीने के बाद उन्होने 25 December 1994 को चंडीगढ़ मे अतिंम सांस ली.
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