इस्लामिक माह रमजान में अल्लाह ने हर बालिग मर्द और औरत रोजे फर्ज किए हैं. यानि रमजान के माह में हर किसी को रोजा रखना जरुरी होता है. इस धर्म के अनुसार जो रोजा नहीं रखता उसे पापी कहा जाता है. ऐसे ही कहा गया है कि हर हैसियतमंद मुसलमान पर जिंदगी में एक बार हज करना फर्ज है. यानि अपने जीवम में एक बार हज पर जरूर जाना चाहिए. इस्लाम धर्म इसके बारे में भी बहुत सी बातें कहता है.
सऊदी अरब के मक्का में हर साल दुनियाभर के लाखों मुसलमान हज के लिए इकठ्ठा होते हैं. हज तीर्थयात्रा में मुस्लिम मक्का और उसके नजदीकी पवित्र स्थलों अराफात, मीना और मुजदलिफा जाते हैं. हज एक पाक तीर्थ है जहां जाने से शख्स की जिंदगी बदल जाती है. इसलिए हज एक बार जाना जरुरी माना गया है.
इसके अलावा बता दिए, रमज़ान का तीसरा अशरा शुरू हो गया है. इबादत के साथ रमजान माह में साहिबे-निसाब मुसलमान माल-ओ-दौलत पर ढाई फीसद की दर से जकात निकालकर गरीब मिस्कीनों को देते हैं. रमजान को इबादत के बाद मिलने वाले ईनाम के हिसाब से तीन अशरों में तकसीम किया गया है. आखिरी दस दिन रोजेदार ज्यादा से ज्यादा इबादत कर अल्लाह से तौबा करें. आखिरी अशरे की ताक रातों यानी विषम तारीखों की रातों में शबे-कद्र भी आती है. शबे-क्रद में मांगी गई दुआ अल्लाह सीधे कबूल फरमाता है.
आखिर अशरे में घर परिवार छोड़कर मस्जिदों में ठहरने को ऐतकाफ कहते हैं. लिहाजा मस्जिदों में आज से ऐतकाफ का सिलसिला भी शुरू हो गया. बुजुर्ग मस्जिदों के कोने में दस दिन का ऐतकाफ करने लगे हैं, जोकि चांद देखकर ईद मनाने के लिए मस्जिदों से बाहर आएंगे.
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