श्रीहनुमान जी से जुडी कई कहानियां और कथाएं हैं जो आपने शायद ही पढ़ी या सुनी होंगी। ऐसे में आज हम आपको वह कथा बताने जा रहे हैं जो हनुमान जी ने माता जानकी को सुनाई थी और जिससे सभी दुःख समाप्त हो गए थे।
हनुमान जी ने, जो अँगूठी माता जानकी जी के श्रीचरणों में डाली, उस पर राम नाम अंकित देख कर माता सीता जी को परम आश्चर्य हुआ। उस दौरान वह सोचने लगी, कि श्रीराम जी की यह अँगूठी, यहाँ भला कैसे आई? लेकिन आश्चर्य से भी बढ़कर उनके मन में आनंद व हर्ष छा गया। माँ जानकी की मनःस्थिति है ही ऐसी, कि वे पल प्रतिपल अपने मन की अवस्था को भिन्न-भन्न मुद्रायों में पा रही हैं। कारण यह कि अभी-अभी तो, उनके मन में हर्ष था, और अभी-अभी, हृदय फिर से विषाद से भर गया।
माता सीता जी जब से श्रीराम जी से विलग हुई हैं, तब से उनके जीवन में सिवा कष्ट के, और भला प्राप्त ही क्या हुआ था। सोने के मृग से लेकर, सोने की लंका की यात्रा में, उनका समय इतना पीड़ा से भरा निकला, कि प्रभु के बिरह के, यह चँद मास, पता नहीं कितने युगों के समान बीते। हर कदम पर तो, उन्हें धोखे का शिकार होना पड़ा था। और अब उनके श्रीचरणों में गिरी अँगूठी को जब उन्होंने देखा, तो हर्ष के साथ-साथ, वे फिर से निराश हो उठी। उन्हें लगा, कि अवश्य ही यह कोई छलावा है। रावण कोई न कोई षड़यंत्र कर रहा है। लेकिन तभी माँ जानकी जी के हृदय में यह विचार कूंदा, कि नहीं, नहीं! मैं शायद ठीक नहीं सोच पा रही हूँ। कारण कि रावण यह अँगूठी माया से तो निर्मित कर ही नहीं सकता। क्योंकि यह अँगूठी तो माया के प्रभाव से परे है। तो फिर यह अँगूठी यहाँ कहाँ से आ गई। कहीं ऐसा तो नहीं, कि यह अँगूठी, रावण श्रीराम जी से छीन कर, अथवा छल से यहाँ ले आया। नहीं, नहीं! यह भी संभव नहीं। कारण कि श्रीराम जी को, न तो छला जा सकता है, और न ही, उन्हें युद्ध में जीता जा सकता है-
हनुमान जी ने सोचा, कि माँ जानकी उहापोह की स्थिति में हैं। वे तो बिचारी पहले ही, अपने मन पर विभिन्न प्रकार के कटु भावों के अत्याचार से त्रस्त हैं। और उनके पीड़ा से सना व छलनी हृदय, शीघ्र से शीघ्र, कैसे शाँत हो, मुझे यही उपाय करना चाहिए। तो क्या मुझे माता सीता के समक्ष उपस्थित होकर, अपना परिचय दे देना चाहिए? अथवा कोई और उपाय करना चाहिए। श्रीहनुमान जी मन ही मन यह चिंतन करने लगे। श्रीहनुमान जी ने सोचा, कि माता सीता जी, अँगूठी को देखने के पश्चात भी संदेह के घेरे को पाटने में, असफ़ल सिद्ध हो रही हैं। ऐसे में हृदय की विचलता, घुटन व पीड़ा मिटाने का एक ही कारागार उपाय है, और वह उपाय है, प्रभु श्रीराम जी के गुणों व लीलायों का श्रद्धा विश्वास से श्रवण करना। ‘श्रीराम कथा’ को श्रवण करना, मानों यूँ है, जैसे तपते पैर के छालों पर, कोई मल्लम लगादे। अथवा युगों से प्यासे, किसी मानव को अमृत के फुँहारे में नहला दिया जाये। श्रीहनुमान जी ने, माता सीता जी के संदर्भ में भी यही उपाय अपनाया। वे वृक्ष पर बैठे बैठे भगवान श्रीराम जी की कथा गाने लगे। और माता सीता जी के कोमल व पावन हृदय पर, इसका श्रेष्ठतम व अचूक प्रभाव हुआ। जिसे सुन माँ जानकी जी का सारा दुख भाग गया। वे कान और मन लगाकर, संपूर्ण श्रीराम कथा श्रवण करने लगी।
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