रामभक्त हनुमान ने लिखी थी पहली रामायण लेकिन इस कारण फेंक दी थी सागर में

रामभक्त हनुमान ने लिखी थी पहली रामायण लेकिन इस कारण फेंक दी थी सागर में
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हनुमान जी को शिवावतार या रुद्रावतार भी मानते हैं. ऐसे में रुद्र आंधी-तूफान के अधिष्ठाता देवता भी हैं और देवराज इंद्र के साथी भी. इसी के साथ विष्णु पुराण के मुताबिक़ रुद्रों का उद्भव ब्रह्माजी की भृकुटी से हुआ था और हनुमानजी वायुदेव और मारुति नामक रुद्र के पुत्र थे. इसी के साथ इन सभी को सभी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त था और वह सेवक भी थे और राजदूत, नीतिज्ञ, विद्वान, रक्षक, वक्ता, गायक, नर्तक, बलवान और बुद्धिमान भी.

कहते हैं शास्त्रीय संगीत के तीन आचार्यों में से एक हनुमान भी थे और अन्य दो थे शार्दूल और कहाल. इसी के साथ 'संगीत पारिजात' हनुमानजी के संगीत-सिद्धांत पर आधारित है. तो आइए आज बताते हैं हनुमान जी से जुड़े कुछ राज. क्यों फेंकी हनुमान ने हनुमद रामायण - प्रभु श्री राम के जीवन पर अनेकों रामायण लिखी गई है जिनमे प्रमुख है वाल्मीकि रामायण, श्री राम चरित मानस, कबंद रामायण (कबंद एक राक्षस का नाम था), अद्भुत रामायण और आनंद रामायण. कहा जाता है श्री राम को समर्पित एक रामायण स्वयं भक्त हनुमान जी ने लिखी थी जो हनुमद रामायण के नाम से जानी जाती है. कहते हैं इसे ही प्रथम रामायण होने का गौरव प्राप्त है, लेकिन स्वयं हनुमान जी ने ही अपनी उस रामायण को समुद्र में फ़ेंक दिया था.

जी दरअसल शास्त्रों के अनुसार सर्वप्रथम रामकथा हनुमानजी ने लिखी थी और वह भी एक शिला (चट्टान) पर अपने नाखूनों से लिखी थी. ये रामकथा वाल्मीकिजी की रामायण से भी पहले लिखी गई थी ये घटना तब की है जबकि भगवान श्रीराम रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद अयोध्या में राज करने लगते हैं और श्री हनुमानजी हिमालय पर चले जाते हैं. वहां वे अपनी शिव तपस्या के दौरान एक शिला पर प्रतिदिन अपने नाखून से रामायण की कथा लिखते थे. इस तरह उन्होंने प्रभु श्रीराम की महिमा का उल्लेख करते हुए हनुमद रामायण की रचना की. कहते हैं कुछ समय बाद महर्षि वाल्मीकि ने भी वाल्मीकि रामायण लिखी और लिखने के बाद उनके मन में इसे भगवान शंकर को दिखाकर उनको समर्पित करने की इच्छा हुई और वे अपनी रामायण लेकर शिव के धाम कैलाश पर्वत पहुंच गए और वहां उन्होंने हनुमानजी को और उनके द्वारा लिखी गई हनुमद रामायण को देखा.

हनुमद रामायण के दर्शन कर वाल्मीकिजी निराश हो गए. उसके बाद वाल्मीकिजी को निराश देखकर हनुमानजी ने उनसे उनकी निराशा का कारण पूछा तो महर्षि बोले कि उन्होंने बड़े ही कठिन परिश्रम के बाद रामायण लिखी थी, लेकिन आपकी रामायण देखकर लगता है कि अब मेरी रामायण उपेक्षित हो जाएगी, क्योंकि आपने जो लिखा है उसके समक्ष मेरी रामायण तो कुछ भी नहीं है. वहीं वाल्मीकिजी की चिंता का शमन करते हुए श्री हनुमानजी ने हनुमद रामायण पर्वत शिला को एक कंधे पर उठाया और दूसरे कंधे पर महर्षि वाल्मीकि को बिठाकर समुद्र के पास गए और स्वयं द्वारा की गई रचना को श्रीराम को समर्पित करते हुए समुद्र में फेंक दिया. उसके बाद से हनुमान द्वारा रची गई हनुमद रामायण उपलब्ध नहीं है.

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