आज भी मोना डार्लिंग...सुन, थम जाता है रिमोट का बटन

आज भी मोना डार्लिंग...सुन, थम जाता है रिमोट का बटन
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किसी रविवार टेलीविज़न का रिमोट कंट्रोल दबाते - दबाते जब कहीं आपको मोना, लूट लो सोना, थैंक्यू मोना डार्लिंग की आवाज़ सुनाई दे तो आप कुछ देर के लिए उत्साहित होकर चैनल बदलने की प्रक्रिया को रोक लेते हैं. जी हां, यही जादू था इस आवाज़ का. हिंदी सिनेमा में लंबे समय तक खलनायकी के मामले में राज करने वाले अजित को आज भी दर्शकों द्वारा जाना जाता है. 27 जनवरी 1922 को जन्मे अजित का नाम हामिद अली खान था. मगर फिल्मों में उन्हें अजित के नाम से जाना गया. उन्हें बचपन से ही अभिनय में रूचि थी. उनके पिता बशीर खान हैदराबाद में निजाम की सेना में काम करते थे. अजित ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा आंध्रप्रदेश के वारंगल जिले से की. 1946 में उन्होंने फिल्म शाहे मिस्त्र 1946 से अपने फिल्म की तैयारी की.

वर्ष 1946 से 1956 तक वे अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करते रहे. हालांकि फिल्म बेकसूर में उन्होंने नायक का काम किया मगर कुछ फिल्मों के बाद उन्होंने खलनायक की भूमिका निभाना अधिक पसंद किया. उन्होंने लोकप्रिय निर्माता निर्देशक स्व. बीआर चोपड़ा की फिल्म नया दौर, में अभिनय कर अपने अभिनय की छाप छोड़ी. यही नहीं उन्होंने मुगले आज़म में छोटी सी भूमिका से भी सभी का ध्यान अपनी और खींचा.

वर्ष 1973 में उन्होंने जंजीर, यादों की बारात, समझौता, कहानी किस्मत की और जुगनू जैसी फिल्मों में अपनी प्रतिभा का परिचय देकर खलनायकी में अपनी जगह बना ली. सुभाष घई की फिल्म कालीचरण में उन्हें लाॅयन के तौर पर पहचान मिली. उनका डाॅयलाॅग सारा शहर मुझे लाॅयन के नाम से जानता है बेहद लोकप्रिय रहा.

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