बिस्मिल्ला खाँ का जन्म बिहारी मुस्लिम परिवार में पैगंबर खाँ और मिट्ठन बाई के यहाँ बिहार के डुमराँव के ठठेरी बाजार के एक किराए के मकान में हुआ था. उस रोज भोर में उनके पिता पैगम्बर बख्श राज दरबार में शहनाई बजाने के लिए घर से निकलने की तैयारी ही कर रहे थे कि उनके कानों में एक बच्चे की किलकारियां सुनाई पड़ी. अनायास सुखद एहसास के साथ उनके मुहं से बिस्मिल्लाह शब्द ही निकला. उन्होंने अल्लाह के प्रति आभार व्यक्त किया. हालांकि उनका बचपन का नाम कमरुद्दीन था. लेकिन वह बिस्मिल्लाह के नाम से जाने गए. वे अपने माता-पिता की दूसरी सन्तान थे. उनके खानदान के लोग दरवारी राग बजाने में माहिर थे जो बिहार की भोजपुर रियासत में अपने संगीत का हुनर दिखाने के लिये अक्सर जाया करते थे. उनके पिता बिहार की डुमराँव रियासत के महाराजा केशव प्रसाद सिंह के दरवार में शहनाई बजाया करते थे. बिस्मिल्लाह खान के परदादा हुसैन बख्श खान, दादा रसूल बख्श, चाचा गाजी बख्श खान और पिता पैगंबर बख्श खान शहनाई वादक थे. 6 साल की उम्र में बिस्मिल्ला खाँ अपने पिता के साथ बनारस आ गये. वहाँ उन्होंने अपने मामा अली बख्श 'विलायती' से शहनाई बजाना सीखा. उनके उस्ताद मामा 'विलायती' विश्वनाथ मन्दिर में स्थायी रूप से शहनाई-वादन का काम करते थे.
उस्ताद का निकाह 16 साल की उम्र में मुग्गन ख़ानम के साथ हुआ जो उनके मामू सादिक अली की दूसरी बेटी थी. उनसे उन्हें 9 संताने हुई. वे हमेशा एक बेहतर पति साबित हुए. वे अपनी बेगम से बेहद प्यार करते थे. लेकिन शहनाई को भी अपनी दूसरी बेगम कहते थे. 66 लोगों का परिवार था जिसका वे भरण पोषण करते थे और अपने घर को कई बार बिस्मिल्लाह होटल भी कहते थे. लगातार 30-35 सालों तक साधना, छह घंटे का रोज रियाज उनकी दिनचर्या में शामिल था. अलीबख्श मामू के निधन के बाद खां साहब ने अकेले ही 60 साल तक इस साज को बुलंदियों तक पहुंचाया .
गूंज उठी शहनाई में दिया था संगीत: उन्होंने कहा था कि यह दिन न सिर्फ उनके लिए बल्कि वहां मौजूद सभी श्रोताओं के लिए बेहद खास है क्योंकि बिस्मिललाह खान यहां पर मौजूद हैं. बिस्मिल्लाह खान ने गूंज उठी शहनाई के लिए भी संगीत दिया था. लेकिन उस वक्त वह इतने नाराज हुए कि फिर उन्होंने दूसरी फिल्म में संगीत नहीं दिया. वह अकसर कहते थे दुनिया की दौलत एक तरफ और संगीत एक तरफ फिर भी वह भारी ही होगा. पैसे से संगीत को नहीं तोला जा सकता है.
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