पर्यावरण का भी संदेश देती है हरतालिका तीज

पर्यावरण का भी संदेश देती है हरतालिका तीज
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देश में कई प्रकार की तीज त्यौहार मनाएं जाते हैं।​ जिसमें हरतालिका तीज का भी काफी महत्व होता है। इस दिन देशभर में सुहागिन अपने पति के लंबी आयु के लिए निर्जला का व्रत रखती है और शाम को मां गौरी और शिव जी की पूजा करने के बाद में व्रत खोलती हैं। यह त्यौहार गणेश चतुर्थी से एक दिन पहले आता हैं। इस बार यह 12 सितंबर को मनाया जाएगा। इस ​दिन सुहागिन तो व्रत रखती है साथ ही अविवाहित स्त्री भी व्रत रखती है और अच्छे पति की कामना करती हैं। यह त्यौहार तो हम अभी तक सिर्फ शास्त्रों के अनुसार मनाते आ रहे हैं लेकिन आपको बता दें कि इस त्योहार को पर्यावरण से भी जोड़कर देखा जाता है। 

जानिए किनसे किया था सबसे पहले हरतालिका तीज व्रत

हरतालिका तीज हर साल भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है| इस दिन को पर्यावरण से इसलिए जोड़ा गया है क्योंकि इस दिन सुहागिन 16 तरह की पत्तियों शिवजी को चढ़ाकर अपने घर में सुख -समृद्धि का वर मांगती हैं और यह भी कहा जाता है कि 16 तरह की पत्तियां चढ़ाने से मौजूद आसपास का वातावरण शुद्ध हो जाता हैं। आइए आपको बताते है सु​हागिन कौन सी पत्तियां मां गौरी और शिव को चढ़ाती हैं। 

पति पर भारी पड़ी भारती, कर दिया ऐसा काम

16 प्रकार की पत्तियां कुछ इस प्रकार से हैं बिल्वपत्र, जातीपत्र, तुलसी,बांस, देवदार पत्र, सेवंतिका,कनेर, केले के पत्ते, आम के पत्ते, पान के पत्ते, शमी केले के पत्ते, धतूरा, अगस्त्य, चंपा, भृंगराज और पान के पत्ते पूजा के दौरान चढ़ाए जाते है। आपको बता दें कि मां गौरी ने भी भगवान शिव जी को पाने के लिए 107 बार जन्म लिया था इसके बाद 108 वें जन्म में शिव जी ने मां गौरी को अपनी अर्धांगनी माना था।  

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