नई दिल्ली: केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने दिसंबर 2024 में की गई दवाओं के सैंपल जांच की रिपोर्ट जारी की है। इसमें 135 दवाएं गुणवत्ता मानकों पर खरी नहीं उतरीं। इन दवाओं में दिल, शुगर, किडनी, ब्लड प्रेशर और एंटीबायोटिक जैसी बीमारियों के इलाज में उपयोग होने वाली दवाएं शामिल हैं। यह रिपोर्ट गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि ये दवाएं देश की बड़ी फार्मा कंपनियों द्वारा बनाई गई थीं।
इन दवाओं के फेल होने के पीछे की वजह उनकी खराब गुणवत्ता और निर्धारित मानकों पर खरा न उतरना है। केंद्रीय और राज्य औषधि प्रयोगशालाओं में इन दवाओं का परीक्षण किया गया, जिसमें 51 सैंपल केंद्रीय प्रयोगशालाओं और 84 सैंपल राज्य प्रयोगशालाओं में जांचे गए। लगातार ऐसी रिपोर्ट्स आना औषधि गुणवत्ता व्यवस्था की खामियों को उजागर करता है। इस सूची में कई नामी कंपनियों की दवाएं शामिल हैं। इनमें सीएमजी बायोटेक की बीटा हिस्टाइन, सिपला की ओकामैट, एडमैड फार्मा की पेंटाप्राजोल, शमश्री लाइफ साइंसेज का मैरोपेनम इंजेक्शन-500 और मार्टिन एंड ब्राउन की एल्बेंडाजोल जैसी दवाएं प्रमुख हैं। इसके अलावा जन औषधि केंद्रों पर मिलने वाली आम दवाएं, जैसे सेफपोडोक्साइम टैबलेट, मेटफॉर्मिन टैबलेट और पेरासिटामोल 500 एमजी भी फेल हुई हैं।
सरकार ने इन दवाओं को खतरनाक घोषित करते हुए उनके निर्माताओं पर कार्रवाई शुरू कर दी है। जिन दवाओं के सैंपल मानकों पर खरे नहीं उतरे हैं, उनके लाइसेंस रद्द करने की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। दवा कंपनियों पर इस तरह की सख्ती पहली बार नहीं हो रही है। इससे पहले सरकार ने 206 फिक्स डोज कॉम्बिनेशन (FDC) दवाओं पर भी प्रतिबंध लगाया था। इन दवाओं को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताया गया था।
ड्रग्स एडवाइजरी बोर्ड और CDSCO की टीमें नियमित रूप से दवाओं की गुणवत्ता जांचने के लिए परीक्षण करती हैं। यह प्रक्रिया कई चरणों में होती है, जिसमें दवा के डॉक्यूमेंट्स, लेबलिंग, एक्सपायरी और असर का परीक्षण शामिल होता है। किसी भी तरह की झूठी जानकारी पाए जाने पर लेबलिंग में बदलाव किया जाता है।
CDSCO की यह रिपोर्ट स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए गंभीर खतरे की घंटी है। खासतौर पर मधुमेह, माइग्रेन और अन्य गंभीर बीमारियों के मरीजों को दी जाने वाली दवाओं का क्वालिटी टेस्ट में फेल होना चिंताजनक है। दवा उद्योग की साख पर उठे सवालों के बीच सरकार को इस दिशा में और कड़े कदम उठाने की जरूरत है।