इंच-इंच कट गए लेकिन नहीं कबूला इस्लाम, भाई मणि सिंह के बलिदान दिवस पर देश कर रहा नमन

इंच-इंच कट गए लेकिन नहीं कबूला इस्लाम, भाई मणि सिंह के बलिदान दिवस पर देश कर रहा नमन
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अमृतसर: देश और धर्म के लिए बलिदान देने वालों में सिख समुदाय का योगदान अनुकरणीय है। सभी गुरुओं से लेकर उनके शिष्यों और समर्थकों ने भी मातृभूमि और पुण्यभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था। ऐसे ही एक वीर शहीद थे भाई मणि सिंह जी, जिनके बचपन का नाम 'मणि राम' था। मणि राम जी का जन्म 7 अप्रैल 1644 को अलीपुर उत्तरी में एक राजपूत परिवार मे हुआ था, जो सम्प्रति पाकिस्तान के मुजफ्फरगढ़ जिले में मौजूद है।

उनके पिता का नाम माई दास जी तथा माता का नाम मधरी बाई था। भाई मणि राम ने कई गुरुओं की सेवा की और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हुए धर्म और सत्य के मार्ग पर चले। जब मणि राम 13 साल के थे, तब उनके पिता राव माई दास उन्हें गुरु हर राय के पास श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए कीरतपुर ले गए। मणि सिंह ने गुरु हर राय की सेवा में कीरतपुर में लगभग दो साल बिताए, जहाँ उन्होंने खाना पकाने के साथ बर्तन साफ ​​किए और अन्य काम भी किए। गुरु हर राय के देहांत के बाद, मणि सिंह ने गुरु हर कृष्ण की सेवा शुरू की। जब गुरु हर  कृष्ण दिल्ली चले गए, तो मणि राम उनके साथ गए लोगों में शामिल थे।

जब 30 मार्च 1664 को दिल्ली में गुरु हर कृष्ण जी की मृत्यु हो गई, तो मणि राम, गुरु हर कृष्ण जी की माता माता सुलखानी को लेकर बकाला पहुंचे और गुरु तेग बहादुर के सामने सेवा के लिए उपस्थित हुए। मणि सिंह के बड़े भाई भाई जेठा सिंह और भाई दियाल दास भी गुरु के साथ सेवा के लिए बकाला पहुंचे। उस वक़्त मणि राम की आयु 20 वर्ष थी। इसी बीच जब गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितों की विनती और हिंदू धर्म को बचाने में मदद के लिए उनके अनुरोध पर ध्यान दिया और औरंगज़ेब के सामने दिल्ली जाने का फैसला किया। तो भाई जेठा और मणि राम और कुछ अन्य सिख उनकी देखभाल के लिए गुरु गोबिंद सिंह के साथ आनंदपुर में ही रुक गए। भाई मति दास, भाई सती दास और भाई दियाल दास गुरु तेग बहादुर के साथ दिल्ली गए। यहाँ औरंगज़ेब ने गुरु तेग बहादुर के साथ आए सभी लोगों को गिरफ्तार करवा लिया और दिल्ली में सभी को मौत के घाट उतार दिया।

 

1699 में वैसाखी के दिन जब गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की और भाई मणि राम ने गुरु गोबिंद सिंह के हाथों अमृत ग्रहण किया और मणि राम से वे मणि सिंह बन गए। इस दिन भाई मणि सिंह के भाइयों, राय सिंह, रूप सिंह और मान सिंह को दीक्षा दी गई थी और मणि सिंह के पांच बेटों को भी खालसा के रूप में दीक्षा दी गई थी। मणि सिंह के पाँचों बेटे बचितर सिंह, उदय सिंह, अनायक सिंह, अजब सिंह, अजायब सिंह भी देश की रक्षा हेतु मुगलों से लड़ते हुए बलिदान हुए। इनमे से कुछ गुरु गोबिंद सिंह के साथ चमकौर की लड़ाई में शहीद हुए, तो कुछ आनंदपुर साहिब के पास निहान की लड़ाई में बलिदान हुए। यही नहीं, भाई मणि सिंह के 11 भाई भी गुरुओं की सेवा में युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। भाई मणि सिंह के 13 भतीजे और 9 चाचा भी छठे पातशाह की पुत्री बीबी वीरो जी की शादी के समय हुए मुग़लों के हमले में शहीद हुए । 

खुद भाई मणि सिंह जी को मुग़ल सैनिकों ने गिरफ्तार कर लिया और उन्हें इस्लाम स्वीकार करने के लिए कहा गया। जब इस्लाम स्वीकार करने से उन्होंने इंकार कर दिया, तो मुगल शासक ने उनके शरीर के सभी जोड़ों से काट-काट कर उनकी हत्या का हुक्म सुनाया। गरम चिमटों से मांस नोचे जाने की वजह से उनके शरीर में सिर्फ हड्डियां बचीं थी। फिर भी आज ही के दिन अर्थात 14 जून 1738 को भाई मणि सिंह, गुरुदेव का स्मरण करते हुए बलिपथ पर चल दिए। आज बलिदान के उस महामूर्ति को उनके बलिदान दिवस पर पूरा देश नमन करता है और उनके गौरवगान को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेता है। 

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