बढ़ते प्रदुषण के कारण स्वस्थ समस्याए बढ़ रही है और इसमें सबसे ज्यादा संख्या है आस्था के मरीजों की , लेकिन अस्थमा के कई इलाज के साथ इसके एक बेहतर इलाज का विकल्प है साल्ट थेरेपी। यह एक ऐसी थैरेपी है जिसमें बिना किसी साइड इफेक्ट के अस्थमा का इलाज किया जाता है। ये थैरेपी पूरी तरह से नेचुरल और सुरक्षित है। हालांकि सिर्फ अस्थमा ही नहीं बल्कि जिन लोगों को सांस से संबंधित कोई अन्य रोग हो, नींद की समस्या हो या साइनस आदि हो उनके लिए भी ये थैरेपी कामयाब है। आज इस लेख में हम आपको बताएं कि आखिर सॉल्ट थैरेपी क्या है और अस्थमा रोग में ये किस तरह से कारगार है।
सॉल्ट थैरेपी के लिए पेशेंट को एक कमरे में रखा जाता है और एक कमरे को आठ से दस टन नमक से तैयार कर एक गुफा का रूप दिया जाता है। एक्सपर्ट इस कमरे के तापमान और जलवायु को नियंत्रित कर मरीजों को आधे घंटे से लेकर एक घंटे तक इस रूम में रखते हैं। इस कमरे में एक साथ 6 लोगों का इलाज हो सकता है। इस रूम के बाहर लगे हेलो जेनरेटर के जरिये रूम में फार्माग्रेट सोडियम क्लोराइड युक्त हवा दी जाती है। इस दौरान मरीज की सांस से नमक के कण सांस की नली से होते हुए फेफड़े तक पहुंचते हैं। आपको बता दें कि यह थैरेपी तक सामने आई थी जब 1843 में पॉलिश हेल्थ अधिकारियों ने देखा कि जो मजदूर पॉलैंड में नमक की खदानों में काम करते हैं वह सांस से जुड़ी किसी भी बीमारी के शिकार नहीं हैं। इसके बाद पूर्वी यूरोप में यह थेरेपी फेमस हो गई। हालांकि आज भी भारत की तुलना में विदेशा में इस थैरेपी का ज्यादा प्रयोग होता है।
डॉक्टर्स के अनुसार सॉल्ट थैरेपी और अस्थमा के इलाज के बीच में बहुत ही सिंपल साइंस है। कोई भी व्यक्ति अस्थमा का शिकार तब होता है जब उसकी सांस की नलियों में ऐंठन आ जाती है। क्योंकि इस थैरेपी में पूरी तरह से नमक का प्रयोग होता है इसलिए नमक सांस की नलियों में आई सूजन और ऐंठन को कम करता है। जिससे सांस की नलियां खुल जाती हैं और वहां हवा का आना-जाना बहुत आसान हो जाता है। इससे गले में ब्लॉकेज और बलगम बनने की समस्या भी नहीं होती है। आपको बता दें कि सिर्फ अस्थमा ही नहीं बल्कि साइनस, क्रोनिक ब्रोंकाइटिस, साइनोसाइटिस, सोराइसिस, एग्जिमा, एलर्जी वाली खांसी, सामान्य एलर्जी और त्वचा संबंधित बीमारियों में भी यह थैरेपी आराम करती है।
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