स्लिम बॉडी पाने के चाह में इन पद्धति का सहारा ले रहे लोग, जाने लिपोसक्शन के बारे में

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यह सर्जरी आमतौर पर नितंबों, पेट, जांघें और चेहरे पर की जाती है. लिपोसक्शन के द्वारा केवल वसा निकाली जाती है सैल्युलाइट नहीं. यह सर्जरी एनेस्थीसिया दे कर की जाती है. सर्जन छोटा कट लगा कर उस में सक्शन पंप या एक बड़ी सीरिंज डाल कर अतिरिक्त वसा निकाल लेता है. इस में कितना समय लगेगा यह इस पर निर्भर करता है कि कितनी वसा निकाली जानी है.

लिपोसक्शन के प्रकार लिपोसक्शन की कई अलगअलग तकनीकें हैं, जिन में 2 सब से प्रचलित हैं:

ट्युमेसैंट लिपोसक्शन: इस तकनीक में शरीर के वसा वाले क्षेत्रों में सर्जरी से पहले एक घोल डाला जाता है, जिस से वसा निकालने में आसानी होती है. इस से रक्तस्राव कम होता है और सर्जरी के पहले और बाद में दर्द कम करने में मदद मिलती है. लिपोसक्शन के लिए कोई आयुसीमा निर्धारित नहीं है. 60 वर्ष की आयु के लोगों में भी इस के अच्छे परिणाम मिले हैं. दोनों ही सर्जरियां पेशेवर डाक्टर से ही कराएं.

कब जरूरी है लाइपोसक्शन

– बगल से अत्यधिक पसीना निकलने की समस्या से पीडि़त लोगों के उपचार के लिए.

– शरीर के कुछ निश्चित अंगों का आकार कम करने के लिए.

– गर्भावस्था के बाद शरीर को सही आकार देने के लिए.

– बेनिग्न फैटी ट्यूमर्स को ठीक करने के लिए.

– उन जगहों जैसे ठुड्डी, गरदन और चेहरे से वसा को कम करना जहां से वसा निकालना कठिन हो.

– सुडौल टमी के लिए.

रिस्क फैक्टर्स: सभी सर्जरियों में कोई न कोई रिस्क होता है. लिपोसक्शन को अगर विशेषरूप से प्रशिक्षित कौस्मैटिक सर्जन से कराया जाए तो इस के अच्छे परिणाम मिलते हैं और रिस्क न्यूनतम होता है. अधिकतर लोग सर्जरी के 2 सप्ताह बाद अपनी सामान्य गतिविधियां शुरू कर सकते हैं. फिर भी इस से जुड़े कुछ रिस्क निम्न हैं:

– स्किन के संक्रमण के मामले बहुत कम देखे जाते हैं, लेकिन गंभीर स्किन संक्रमण के कारण मृत्यु भी हो सकती है.

– वसा के लूज टुकड़े रक्त नलिकाओं में फंस जाते हैं और फेफड़ों में इकट्ठे हो जाते हैं या मस्तिष्क में पहुंच जाते हैं, इसे फैट ऐंबोलिज्म कहते हैं जो एक चिकित्सीय आपात स्थिति है.

– किडनी और हृदय की समस्याएं.

– स्किन का ऊंचानीचा और बदरंग हो जाना.

– आमतौर पर लिपोसक्शन में सब से बड़ा खतरा संक्रमण का होता है.

– कुछ सप्ताह तक, सूजन और दर्द हो सकता है.

– स्किन का खुरदुरा हो जाना, उस का लचीलापन कम हो जाना.

– स्किन के नीचे अस्थाई पौकेट्स जिन्हें सेरोमास कहा जाता है में फ्लूड का जमा हो जाना, जिसे नीडल से निकाला जाता है.

– प्रभावित क्षेत्र में स्थाई या अस्थाई सुन्नपन.

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