नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय की एक संविधान पीठ ने देश में समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता प्रदान करने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर ली है। 10 दिनों तक चली सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत की संविधान बेंच ने इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। बेंच का नेतृत्व देश के प्रधान न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ कर रहे थे और इसमें न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति हेमा कोहली भी शामिल थे।
रिपोर्ट के अनुसार, सुनवाई के दौरान, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने कोर्ट को बताया कि समलैंगिक विवाह को कोई कानूनी मान्यता नहीं है और सिर्फ विषमलैंगिक विवाह ही बच्चों को स्थिरता प्रदान करते हैं। बता दें कि याचिकाओं के समूह ने यह तर्क देते हुए कानून के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता प्रदान करने की मांग की है, कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार LGBTQIA+ नागरिकों को भी दिया जाना चाहिए।
वहीं, केंद्र सरकार ने इस तरह की याचिकाओं का विरोध किया है। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दाखिल एक हलफनामे में, केंद्र सरकार ने कहा कि भागीदारों के रूप में एक साथ रहना और समान लिंग वाले लोगों द्वारा यौन संबंध बनाना भारतीय परिवार इकाई की अवधारणा के साथ तुलनीय नहीं है, जिसमें ऐसे विवाह से जन्मे बच्चों के साथ जैविक पुरुष और जैविक महिला शामिल हैं।
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