कोरोना वायरस के वजह से बहुत से लोग वक्त से पहले जान गंवा रहे हैं. सिर्फ कोविड-19 से ही नहीं, बहुत सी ऐसी बीमारियां हैं, जो समय से पहले लोगों की जिंदगी छीन लेती हैं. ऐसे में जब कोई 'जीवेत शरद: शतम्' यानी सौ साल जीने का आशीर्वाद देता है, तो वो आशीर्वाद सच कैसे साबित हो सकता है? आखिर क्या करें कि सौ साल या उससे ज्यादा जिएं.
बता दें की महारानी विक्टोरिया हीमोफीलिया की शिकार थीं. इसके बारे में तब पता चला था जब ब्रिटिश शाही परिवार के सदस्य एक के बाद एक इस बीमारी की चपेट में आने लगे. शाही परिवार के कई सदस्यों के हीमोफीलिया से पीड़ित होने के वजह से ही इसे 'शाही बीमारी' की संज्ञा दी गई. महारानी विक्टोरिया की दो बेटियों और एक बेटे को यह बीमारी हो गई थी. इसकी वजह से ही उनके बेटे प्रिंस लियोपोल्ड की मौत एक दुर्घटना के बाद रक्तस्राव से हो गई थी. उस वक्त उनकी उम्र महज 30 साल थी. बाद में जब महारानी की दोनों बेटियों की शादी अलग-अलग देशों के राजाओं और राजकुमारों से हुई तो यह बीमारी आनुवांशिक तौर पर दूसरे देशों में भी फैल गई. आज कई देशों के लोग हीमोफीलिया से पीड़ित हैं.
जानकारी के लिए बता दें कि हीमोफीलिया एक आनुवांशिक रोग है, जिसमें शरीर के बाहर बहता हुआ खून जमता नहीं है. यह बीमारी चोट लगने पर या दुर्घटना में घायल होने की स्थिति में जानलेवा साबित होती है, क्योंकि खून का बहना जल्दी बंद नहीं होता है. विशेषज्ञों के अनुसार, इस रोग का कारण एक रक्त प्रोटीन की कमी होती है, जिसे 'क्लॉटिंग फैक्टर' कहा जाता है. इस प्रोटीन की विशेषता ये है कि यह बहते हुए खून के थक्के जमाकर उसका बहना रोक देता है. आमतौर पर यह बीमारी पुरुषों को ही होती है, लेकिन यह औरतों द्वारा फैलती है. विशेषज्ञों के अनुसार, यह बीमारी पीढ़ियों तक चलती रहती है. हालांकि इस रोग से पीड़ित रोगियों की संख्या भारत में बेहद कम है. इसके बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 17 अप्रैल को 'विश्व हीमोफीलिया दिवस' के तौर पर मनाया जाता है.
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