देहरादून: उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ में भूस्खलन की घटना सामने आई है। जोशीमठ के मनोहर बाद क्षेत्र में जमीन के साथ ही लोगों के मकानों में बड़ी दरारें आ गईं। इसके कारण क्षेत्र के लोगों में दहशत फैल गई। डर के कारण लोग घर छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं। बता दें कि बीते साल जोशीमठ के अलग-अलग भागों में दरारें आ गई थीं। इस बार नई जगह पर दरार आने से लोग डरे हुए हैं।
वही बीते 1 साल से निरंतर जोशीमठ में भारी भूस्खलन हो रहा है। यहां लोग घरों पर ताला लगाकर ठिकाना छोड़ने को मजबूर हो गए हैं। भूस्खलन के कारण घरों में मोटी मोटी दरारें पड़ रही हैं। हालात इतने अधिक खराब हो गए हैं कि लोगों की रातें खतरे के साए में कट रही हैं। लोगों का कहना है कि रात को जमीन ठीक दिखाई देती है, वहीं प्रातः आंख खुलने पर जमीन एवं मकानों में बड़ी-बड़ी दरारें आ जाती हैं। इन दिनों जोशीमठ के मनोहर बाग क्षेत्र के लोग दहशत में हैं। लोगों का कहना है कि जोशीमठ दरक रहा है। खेत, खलिहान में दरारें पड़ गई हैं। ये दरारें कई मीटर नीचे तक हैं। मकानों में दरार पड़ने से घर रहने लायक नहीं रहे हैं। शासन-प्रशासन से गुहार लगा चुके हैं, मगर कहीं से भी राहत मिलने की आस नहीं है।
लोगों का कहना है कि सबसे ज्यादा खतरा मनोहर बाग वार्ड में नजर आ रहा है। यही हाल जोशीमठ के गांधीनगर, रविग्राम, सुनील एवं सिंहधार वार्ड का भी है। मनोहर बाग वार्ड जमीन फटने जैसी घटना हुई है। यहां जमीन और मकान दरक चुके हैं। इसके कारण लोग घर छोड़ चुके हैं। नगर में कुछ व्यक्तियों की स्थिति ऐसी है कि मकान मालिक अपने घर छोड़कर दूसरे स्थान पर भी नहीं जा सकते हैं। लोगों का कहना है कि अपनी कमाई की पूरी जमापूंजी मकान बनाने में लगा दी, अब उन्हीं मकानों में रहना कठिन हो गया है। मनोहर बाग के स्थानीय निवासी चंद्र बल्लभ पांडे ने बताया कि उन्होंने अपनी पूरी जमा पूंजी से जोशीमठ में मकान बनाया था। आज मकान पूर्ण रूप से ध्वस्त होने को है। रात को सोते हैं तो प्रातः बड़ी-बड़ी दरारें मकान में देखने को मिलती हैं। मकान की छत भी पूरी तरह से टेढ़ी हो चुकी है। समझ में नहीं आ रहा है कि करें तो क्या करें। वहीं मनोहर बाकी की रहने वाली महिला उत्तरा पांडे ने बताया कि पूरे मकान में दरार आ चुकी है। घर अब रहने लायक नहीं रहा है। यह बोलते हुए उत्तरा पांडे की आंखों में आंसू आ गए। वे बोलीं कि लोगों के सामने सबसे बड़ी दिक्कत है कि उनकी पूरी जमा पूंजी से मकान खड़ा बना था, मगर आज मकान कब कहां से दरक जाए, कब ढह जाए, कुछ बोला नहीं जा सकता। रातें भी डर के साए में कट रही हैं।
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