अजमेर: वर्षों से, भारतीय मीडिया पर चरमपंथियों के पापों को छिपाने का आरोप लगता रहा है, लेकिन इंटरनेट युग के उदय के साथ, सच्चाई सामने आने लगी है। ऐसी ही एक डरावनी और पैशाचिक घटना जो दशकों की गुमनामी के बाद सामने आई, वह है 1992 का अजमेर बलात्कार मामला। हाल ही में, हिंदी फिल्म "अजमेर 92" के टीज़र ने इस निष्क्रिय विषय को फिर से सुर्खियों में ला दिया, जिससे मुस्लिम खेमे की आपत्तियों और धमकियों और राजनीतिक हस्तक्षेप के बावजूद राष्ट्रीय चर्चाएं शुरू हो गईं। 21 जुलाई, 2023 को, फिल्म आखिरकार सिनेमाघरों में लगी, जिसने देश को हिला देने वाले क्रूर सीरियल रेप पर जनता का ध्यान आकर्षित किया।
अजमेर, भारतीय राज्य राजस्थान में एक प्राचीन शहर है, जिसमें मशहूर मुस्लिम दरगाह, अजमेर शरीफ का मकबरा है। राजनेता, मशहूर हस्तियां और मीडिया के प्रभावशाली लोग अक्सर इस सूफी मकबरे पर अपना सम्मान व्यक्त करते हैं, प्रचार और मीडिया के ध्यान के लिए इसकी प्रमुखता का लाभ उठाते हैं। हालांकि, 1992 में, दरगाह का हाई-प्रोफाइल केयरटेकर खुद को एक चौंकाने वाले सीरियल रेप मामले में फंसा। उनके धार्मिक प्रभाव और राजनीतिक संबंधों ने कथित तौर पर इस निंदनीय और भीषण घटना के दमन में योगदान दिया।
1992 के अजमेर सीरियल रेप में सैकड़ों स्कूली छात्राएं शामिल थीं, जिन्हें एक मुस्लिम चिश्ती ने ब्लैकमेल और यौन शोषण के भयावह तरीके से पीड़ित किया था। एक स्थानीय समाचार पत्र नवज्योति ने बेहद आपत्तिजनक तस्वीरें प्रकाशित करके सच्चाई को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और एक रिपोर्ट में खुलासा किया कि कैसे स्थानीय गिरोह अजमेर के सोफिया गर्ल्स स्कूल की छात्राओं को ब्लैकमेल कर रहे थे। इस रहस्योद्घाटन ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया, जिससे लोगों को अत्याचारों की सीमा से गहरा परेशान कर दिया गया।
दिल दहला देने वाली इस कहानी की शुरुआत अजमेर शरीफ दरगाह के खादिम (केयरटेकर) फारूक चिश्ती से हुई, जिसने गर्ल्स स्कूल की एक छात्रा से दोस्ती की और उसे एक भयावह जाल में फंसाया। उसने कथित तौर पर उसके साथ बलात्कार किया, अश्लील तस्वीरें लीं, और ब्लैकमेल का अभियान शुरू किया। दुख की बात है कि यह छात्र एकमात्र पीड़ित नहीं था; खादिम ने और अधिक लड़कियों की मांग की, और जिन लोगों को उसने पेश किया, उन्हें भी बलात्कार और ब्लैकमेल के समान नरक का सामना करना पड़ा।
It was happening right under their noses, involving innocent girls, sexually exploited and blackmailed.
— Deeksha Sharma (@Diksharma16) August 23, 2022
This could be one of the first cases of ‘Love Jihad’ in the nation.
Their main target were Hindu Girls. pic.twitter.com/S4zYCqKP8N
प्रभावशाली आरोपियों के खिलाफ मामला बनाना कठिन साबित हुआ, क्योंकि अधिकांश पीड़ित आरोपी व्यक्तियों की सामाजिक और वित्तीय शक्ति के कारण आगे आने में संकोच कर रहे थे। ब्लैकमेलिंग के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीरों और वीडियो ने कुछ अपराधियों की पहचान करने में मदद की, लेकिन आरोपी के प्रभाव को देखते हुए लड़कियों को आगे आने और गवाही देने के लिए राजी करना चुनौतीपूर्ण साबित हुआ, जैसा कि राजस्थान के सेवानिवृत्त डीजीपी ओमेंद्र भारद्वाज ने बताया, जो उस समय अजमेर में पुलिस उप महानिरीक्षक के रूप में कार्यरत थे।
क्या है अजमेर सेक्स कांड :-
साल 1992 में अजमेर में 250 से अधिक हिंदू लड़कियों को फँसा कर उनका बलात्कार किया गया था। धोखे से उनकी अश्लील तस्वीरें खींचकर और उन्हें ब्लैकमेल कर उनसे कहा गया कि वे दूसरी लड़कियों को भी फँसा कर उनके पास लाए। इस तरह से यह रेप और ब्लैकमेलिंग की पूरी एक चेन बन चुकी थी। इस मामले में फारुक चिश्ती, नफीस चिश्ती और अनवर चिश्ती मुख्य आरोपित थे। तीनों ही यूथ कांग्रेस के बड़े नेता थे। फारूक चिश्ती तो उस वक़्त इंडियन यूथ कांग्रेस की अजमेर इकाई का प्रमुख था। वहीं, नफीस चिश्ती कांग्रेस की अजमेर यूनिट का उपाध्यक्ष था। अनवर चिश्ती अजमेर में कांग्रेस का संयुक्त सचिव था। यही नहीं, तीनों ही आरोपित अजमेर के ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के खादिम भी थे। यानी, आरोपितों के पास सियासी और मजहबी, दोनों ही ताकत थी, जिसके चलते कोई भी उनके खिलाफ आवाज़ उठाने की हिम्मत नहीं कर सका। वहीं, बलात्कार का शिकार होने वाली लड़कियां भी आम लड़कियां नहीं थी, इनमे से अधिकतर IAS, IPS जैसे बड़े अधिकारीयों की बेटियां थीं। एक रिपोर्ट के अनुसार, अधिकारियों को इस बारे में पता तो पहले से था, मगर मामला हिन्दू-मुस्लिम का न हो जाए, इसलिए कोई कदम नहीं उठाया गया।
रिपोर्ट बताती हैं कि, आरोपितों ने सबसे पहले एक कारोबारी के बेटे के साथ कुकर्म कर उसकी अश्लील तस्वीर उतारी और उसे अपनी गर्लफ्रेंड को लेकर आने के लिए बाध्य किया। आरोपिओं ने उसकी गर्लफ्रेंड का बलात्कार करने के बाद उसकी अश्लील तस्वीरें उतार लीं और उस लड़की को ब्लैकमेल कर अपनी सहेलियों को लाने को कहा गया। इसके बाद यह सिलसिला सा चल पड़ा। एक के बाद एक लड़की के साथ बलात्कार करना, उनकी नग्न तस्वीरें खींचना, फिर ब्लैकमेल कर उनसे भी अपनी बहन, सहेली, भाभी आदि को लाने के लिए कहना और उन लड़कियों के साथ भी यही घृणित कृत्य करना- इस चेन सिस्टम में 250 से अधिक हिन्दू लड़कियों के साथ भी बलात्कार और कई घिनौने कृत्य हुए। ये भी कहा जाता है कि स्कूल की इन बच्चियों के साथ बलात्कार करने में वालों में नेता, सरकारी अधिकारी तक शामिल थे। लेकिन, प्रशासन बस हिन्दू-मुस्लिम की टेंशन को लेकर चुप था।
जिन लड़कियों के बलात्कार हुए और उनकी अश्लील तस्वीरें खींची गई थीं, उनमें से कईयों ने आत्महत्या कर ली। एक ही साथ 6-7 लड़कों ने आत्महत्या कर लीं। क्योंकि उन्हें बचाने के लिए न प्रशासन आगे आ रहा था, न समाज और लोकलाज के डर से उनके परिवार वाले भी चुप थे। डिप्रेस्ड होकर इन लड़कियों ने मौत को गले लगाना ही उचित समझा। कई महिला संगठनों के प्रयासों के बाद भी लड़कियों के परिवार आगे नहीं आ रहे थे। इस गैंग में शामिल आरोपियों की बड़े-बड़े नेताओं तक पहुँच होने के कारण किसी ने मुंह नहीं खोला। बाद में किसी NGO ने इस मुद्दे को उठाया और फोटोज और वीडियोज के जरिए 30 लड़कियों को पहचाना गया। पीड़िताओं से बात की गई, उन्हें केस दर्ज कराने के लिए कहा गया, मगर सोसाइटी में बदनामी के नाम से कई परिवारों ने इंकार कर दिया। केवल 12 लड़कियां ही केस फाइल करने के लिए राजी हुईं। लेकिन, बाद में धमकियां मिलने पर 10 और लड़कियों ने कदम पीछे खींच लिए। बाकी बची दो पीड़िताओं ने ही मामले को आगे बढ़ाया और इन लड़कियों ने 16 आरोपियों की पहचान की।
अजमेर सेक्स कांड में कोर्ट ने क्या किया :-
1992 में पूरा स्कैंडल सामने आया, लड़कियों से आरोपियों की शिनाख्त करवाने के बाद 8 को अरेस्ट किया। 1994 में आरोपियों में से एक पुरुषोत्तम नामक शख्स ने जमानत पर छूटने के बाद ख़ुदकुशी कर ली। इसके 6 साल बाद इस मामले में पहला जजमेंट आया, अजमेर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने 8 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इसी बीच फारूक चिस्ती को मानसिक बीमार बना दिया गया, जिसके चलते उसका ट्रायल पेंडिंग हो गया। बाद में जिला अदालत ने 4 आरोपियों की सजा घटाते हुए उन्हें दस साल की जेल दे दी। कोर्ट से कहा गया कि दस साल जेल की सजा ही पर्याप्त है। लेकिन, सजा घटाए जाने के फैसले को राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी। मगर, कोई फायदा नहीं हुआ, याचिका ख़ारिज हो गई। एक अन्य आरोपी सलीम नफीस को अजमेर सेक्स कांड के 19 वर्ष बाद 2012 में पकड़ा गया, लेकिन वो भी जमानत पर छुट कर जेल से बाहर आ गया, इसके बाद से सलीम नफीस की कोई खबर नहीं है। सालों-साल गुजर गए, लेकिन कोई नई खबर नहीं आई कि उन बलात्कारियों का क्या हुआ, कितने नेता रेपिस्ट निकले ? सलीम नफीस कहां है ? चिश्ती परिवार के मुख्य आरोपियों का क्या हुआ ? आज उन दर्जनों बेटियों में से कुछ तो ख़ुदकुशी कर चुकी हैं और कई अपने दिलों में इस डर को दबाकर जीने के लिए बाध्य हैं। ये विडम्बना ही है कि, देश के सबसे बड़े सेक्स कांड, जिसमे कांग्रेस के नेता से लेकर अजमेर दरगाह के कुछ लोग भी शामिल थे, जिसमे 250 से अधिक बच्चियों के शरीर और आत्मा के साथ खिलवाड़ किया गया, उसे दबाने की कई कोशिशें की गईं और सच पर पर्दा डाला गया।
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